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________________ प्रस्तावना श्रमणियों को चर्म एवं लौह के उपकरणों को रखने का, पन्थ और मार्ग के भेदप्रभेदों का, पाँच प्रकार के सार्थों का, आठ प्रकार के सार्थवाहों का, आठ प्रकार के सार्थ व्यवस्थापकों का, विहार योग्य क्षेत्रों का, छः आर्य जातियों का, छः आर्यकुलों आदि का उल्लेख हुआ है। द्वितीय उद्देश की व्याख्या में उपाश्रयप्रकृत, सागारिकपारिहारि प्रकृत, आहृतिकानिहृतिका प्रकृत, अंशिकाप्रकृत, पूज्यभक्तोपकरणप्रकृत, उपधिप्रकृत तथा रजोहरणप्रकृत, इन सात सूत्रों का अधिकार है जिनमें प्रसंगवशात् शालि, ब्रीहि आदि धान्यों का, सुराविकट कुम्भ, सितोदकविकट कुम्भ, ज्योति, दीपक, पिण्ड, दुग्ध, दधि, नवनीत, वंशी, वृक्ष आदि पदार्थों का, जांगिक, भांगिक, सानक, पोतक और तिरीटपट्टक इन पाँच प्रकार के वस्त्रों का, पाँच प्रकार के रजोहरणों आदि का उल्लेख हुआ है। तृतीय उद्देश उपाश्रयप्रवेशप्रकृतसूत्र में यथाप्रसंग सलोम-चर्म का, कृत्स्न एवं अकृत्स्न वस्त्रों का, संस्तारक, उत्तरपट्ट, रजोहरण (ऊनी एवं सूती), मुखवस्त्रिका, गोच्छक आदि कपड़ों का, तुम्ब, काष्ठ और मृत पात्रों का, निर्ग्रन्थियों के अधोभाग एवं ऊर्ध्वभाग को ढकने वाले वस्त्रों का, सेना के स्वरूप आदि का उल्लेख हुआ है। चतुर्थ उद्देश में अनुद्धातिक आदि से सम्बन्ध रखने वाले पारांचिक, अनवस्थाप्य, वाचना आदि सोलह प्रकार के सूत्र हैं जिनमें प्रसंगवश गंगा, यमुना आदि महानदियों का, ऐरावती आदि छोटी नदियों का, मृत्यु प्राप्त साधु के शरीर के प्रतिष्ठापना आदि का उल्लेख हुआ है। पंचम उद्देश में ब्रह्मापाय आदि ग्यारह प्रकार के सूत्र हैं जिसमें प्रसंगवशात्, आलेपन, तेल आदि का उल्लेख हुआ है। __षष्ठ उद्देश में वचन आदि से सम्बन्धित सात प्रकार के सूत्रों का समावेश है जिनमें प्रसंगवशात् अलीक वचन, मृषावाद, अपुरुषवाद, उत्सर्गमार्ग, श्रमणश्रमणियों हेतु व्यवहित मार्ग, प्रायश्चित्त, भक्तपान, कौकुचिक, मौखरिक, छ: प्रकार की कल्प स्थितियों का वर्णन किया गया है। आचार विषयक सन्दर्भो के स्पष्टीकरण के लिए भाष्यकार ने तरह-तरह के पौराणिक और लोकप्रचलित दृष्टान्त दिये हैं जिनसे सांस्कृतिक सामग्री में और भी वृद्धि हुई है। इतनी विपुल सांस्कृतिक सामग्री का समवेत अध्ययन अभी तक नहीं हुआ है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि इस विशाल ग्रंथ का
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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