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________________ १३० बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन होते थे। पारंपरिक चतुरंगिणी सेना में उस समय घुड़सवार सैनिकों की बहुलता राज्य में अपराध पर नियंत्रण था क्योंकि शासन व्यवस्था कड़ी थी। छोटेमोटे अपराधों के लिए मृत्यु दण्ड तक दे दिया जाता था। फिर भी उस समय चोरों का बहुत आतंक था। ये चोर जैन साधु-साध्वियों को भी नहीं छोड़ते थे। कभी-कभी तो जैन साधु ही चोरों को पकड़कर राजा के पास उन्हें उचित दण्ड दिलाने के लिए प्रस्तुत होते थे। उस समय कर की उगाही कड़ाई से की जाती थी। कर न देने पर राजा मृत्यु दण्ड तक का आदेश दे देता था। राज्य का समुचित संचालन राजप्रासाद से किया जाता था। दुर्ग तथा नगर की सुरक्षा के लिए खाईं और परिखा का निर्माण किया जाता था। धार्मिक क्षेत्र में जैन श्रमण-श्रमणियों के प्रव्रज्या, आहार, वस्त्र, उपाश्रय, दिनचर्या, विहार-यात्रा, शील और मृत्यु-संस्कार के बारे में विपुल सामग्री पायी जाती है। शास्त्र-सम्मत नियमों का पालन करते हुए ही उन्हें जीवनयापन करने का विधान किया गया है। यदि किसी कारण से नियमों का उल्लंघन हो जाय तो उसके लिए प्रायश्चित्त का समुचित विधान किया गया है। प्रस्तुत ग्रंथ में प्रायः अपवाद गिनाये गये हैं जिससे प्रतीत होता है कि उस समय श्रमण संघ में काफी शिथिलिता आ गई थी। शायद तत्कालीन परिस्थितियाँ भी अपवादों के विवाद के लिए जिम्मेदार थीं। उदाहरण के लिए विशेष परिस्थितियों में मद्यपान एवं मांसभक्षण उनके लिए विहित माना गया है। शील के संबंध में बतलाया गया है कि विशुद्ध कर्मों का आचरण करते हुए मृत्यु का आलिंगन करना उचित है लेकिन अपने शीलव्रत से स्खलित होना कदापि उचित नहीं है। धार्मिक जीवन से सम्बन्धित अन्य सामग्री में विभिन्न महों यथा-इन्द्रमह, यक्षमह, व्यंतरमह, भूतमह, स्कंदमह और शिवमह का, वन-देवता और कुलदेवता का, और कुछ-एक धार्मिक उत्सवों यथा रथयात्रा, आवाह, कौमुदी महोत्सव आदि का उल्लेख प्राप्त होता है। तीर्थंकर महावीर के काल से ही जिन अनेक महों को मनाया जाता था उनमें से कुछ के नाम समकालीन समय में भी प्राप्त होते हैं। इस काल में किसी देवता को प्रसन्न करने के लिए कभी-कभी आगन्तुक की भी बलि दे दी जाती थी। इस काल में तान्त्रिक विधि-विधान का प्रचलन बढ़ रहा था। यह भूतमह से तो स्पष्ट है ही, कभी-कभी साधु-साध्वियों के डर जाने पर उन्हें मांत्रिक के पास ले जाकर चिकित्सा भी कराई जाती थी।
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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