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________________ कला एवं स्थापत्य १२१ उज्जैनी का शासक प्रद्योत कौशाम्बी के राजा उदयन को पकड़ने के लिए इसी प्रकार का एक हाथी बनवाया था।२८ स्थापत्यकला प्राचीन भारत में अनेक प्रकार की इमारतें बनाई जाती थीं जिनमें गृहनिर्माण सबसे महत्त्वपूर्ण था। गृह-निर्माण करने के पूर्व भूमि की परीक्षा की जाती थी। फिर भूमि को समतल किया जाता था, और वहाँ जो निर्माण करना होता था वहाँ अक्षर से अंकित मोहरें (उंडिया) डाली जाती थीं। तत्पश्चात् भूमि खोदी जाती और नींव को मूंगरी से कूटकर, उसके ऊपर ईटें की चिनाई की जाती थी। पीठिका या कुर्सी तैयार हो जाने पर उस पर भवन खड़ा किया जाता था।१९ निशीथचूर्णि के अनुसार गृह में कोष्ठ, सुविधि (चबूतरा) मंडपस्थान (आंगन) गृहद्वार और शौचगृह (वच्च) बनाये जाते थे।२० बृहत्कल्पभाष्य में वास्तु के तीन प्रकार बतलाये गये हैं- खात (भूमिगृह), ऊसिय (उच्छ्रित; प्रासाद आदि),और उभय (भूमिगृह से सम्बद्ध प्रासाद आदि)।२१ राजप्रश्नीयसूत्र में सूर्याभदेव के विमान (प्रासाद) के सन्दर्भ में बतलाया गया है कि वह विमान चारों ओर से प्राकार से घिरा था। प्राकार पर सुन्दर कंगूरे बने थे। विमान के चारों दिशाओं में द्वार थे जो ईहामृग, बृषभ, नरतुरग (मनुष्य के सिर वाला घोड़ा), मकर, विहग (पक्षी), सर्प, किन्नर, चमर, कुंजर, वनलता और पद्मलता की आकृतियों से अलंकृत थे। उनमें विद्याधर-युगल की आकृति वाली वेदिकाएँ बनी हुई थीं। द्वारों पर क्रीड़ा करती हुई अनेक शालभंजिकाएँ भी सुशोभित थीं। द्वारों के दोनों ओर खूटियाँ (णागदन्दटपरिवाडी) थीं और उन खूटियों पर क्षुद्रघण्टिकाएँ टंगी थीं। खूटियों पर लम्बी-लम्बी मालाएँ और छींके (सिक्कग) लटक रहे थे और इन छीकों पर धूपपात्र टंगे थे।२२ बृहत्कल्पभाष्य में प्राकार, द्वार, पताका, ध्वज, तोरण, पीठिका, आसन, छत्र, चंवर आदि वास्तु से संबंधित अनेक शब्दों का उल्लेख प्राप्त होता है।२३ एक जगह कमरे में सुगंधित धूप के जलने का उल्लेख हुआ है।२४ रक्षा प्राचीर प्राचीन काल में दुर्ग या नगर के चारों ओर रक्षा प्राचीर का निर्माण किया जाता था। बृहत्कल्पभाष्य में छह प्रकार के रक्षा प्राचीरों का उल्लेख है- पाषाणमय (द्वारिका), इष्टिकामय (नंदपुर), मृत्तिकामय (सुमनोमुखनगर), खोड यानी
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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