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________________ अध्याय-७ कला एवं स्थापत्य कला एवं स्थापत्य हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर हैं। इनसे तत्कालीन समाज के लोगों की धार्मिक मान्यताओं, उनकी अभिरुचि और विविध तकनीकों की महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। राज्य एवं जीवन के कार्य-व्यापार को चलाने के लिए विविध कलाओं को सीखना आवश्यक माना गया है। इसीलिए भारतीय साहित्य में इनका सम्यक् चित्रण किया गया है । ज्ञाताधर्मकथा जैसे अंगप्रविष्ट जैन ग्रन्थ में भी ७२ कलाओं का उल्लेख हुआ है जिन्हें सीखने के लिये राजकुमार मेघ को निर्देश दिया गया है। लेकिन प्रस्तुत ग्रन्थ बृहत्कल्पभाष्य में इस तरह का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। इस ग्रन्थ में तो केवल निम्न कलाओं के बारे में ही थोड़ी-बहुत जानकारी प्राप्त होती है। चित्रकला बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि उस समय भित्तिचित्र और व्यक्तिचित्र ये दोनों बनाये जाते थे। चित्रं बनाने में उसी विधि का प्रयोग किया जाता रहा होगा जो आम प्रचलन में रहा होगा । तदनुसार पहले जमीन तैयार कर ली जाती थी, फिर रेखाओं द्वारा आकृतियाँ बनाकर उसमें तूलिका से उपयुक्त रंग भर दिया जाता था। २ चित्रकला एक जगह निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के वस्त्र के संदर्भ में पाँच रंगों का उल्लेख भी हुआ है जो इस प्रकार हैं- कृष्ण, नील, लोहित, पीत और शुक्ल । इन्हीं पाँच रंगों का उल्लेख शिल्पशास्त्र के ग्रन्थों में भी हुआ है। भित्तिचित्र का प्रसंग निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के उपाश्रयों के संदर्भ में आया है। कहा गया है कि बिना विशेष कारण के जैन श्रमण- श्रमणियाँ चित्रकर्मयुक्त उपाश्रय में नहीं रुक सकते क्योंकि रहने पर दोष लगेगा जिनका उन्हें प्रायश्चित्त करना पड़ेगा।' इसी संदर्भ में चित्रकर्म का वर्गीकरण किया गया है- सदोष चित्रकर्म और निर्दोष चित्रकर्म। यह वर्गीकरण विषयवस्तु पर आधारित है। वृक्ष, पर्वत, नदी, समुद्र, भवन, वल्लरी, पूर्णघट और स्वस्तिक जैसे मांगलिक पदार्थों के आलेखन को निर्दोष चित्रकर्म और स्त्रियों पुरुषों के आलेखन को सदोष चित्रकर्म कहा गया है।
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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