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________________ धार्मिक जीवन १११ स्कंदमह स्कंदमह आसोज की पूर्णिमा को मनाया जाता था। भगवान् महावीर के समय में स्कन्द पूजा प्रचलित थी। महावीर जब श्रावस्ती पहुँचे तो अलंकारों से विभूषित स्कंदप्रतिमा की सवारी निकाली जा रही थी।१२५ ब्राह्मणों की पौराणिक कथा के अनुसार स्कंद अथवा कार्तिकेय महादेव जी के पुत्र और युद्ध के देवता हैं। तारक राक्षस और देवताओं के युद्ध में स्कंद सेनापति बने थे। उनका वाहन 'मयूर' माना गया है।१२६ शिवमह बृहत्कल्पभाष्य में शिव का उल्लेख मिलता है। किसी पर्वत के निर्झर में शिव की प्रतिमा विद्यमान थी। पत्र, पुष्प आदि से उसकी पूजा की जाती, उसका सिंचन और उपलेपन किया जाता तथा हस्तिमद से उसे स्नान कराया जाता था। शिव की काष्ठ प्रतिमा का उल्लेख भी मिलता है।१२७ इन देवताओं के अतिरिक्त हमें बृहत्कल्पभाष्य में तत्कालीन समाज में प्रचलित कुछ ऐसे देवताओं का उल्लेख प्राप्त होता है। जिनकी पूजा कल्याणकारी रूप में की जाती थी। जो इस प्रकार है वन-देवता बृहत्कल्पभाष्य में 'वन देवता' का उल्लेख मिलता है।१२८ हरिभद्र ने भी अन्य देवी-देवताओं के साथ 'वन-देवता' की अलौकिक शक्ति का वर्णन किया है। जंगल के अधिपति देव को वन-देवता के रूप में जाना जाता था। वनदेवता को जंगल में रहने वाले जीव-जन्तुओं का कल्याण कर उनकी वन्दना किये जाने का उल्लेख है।१२९ कुल-देवता प्रस्तुत ग्रन्थ में उल्लेख है कि जब कभी गलगंड अथवा महामारी से लोग मरने लगते, शत्रु के सैनिक नगर के चारों ओर घेरा डाल देते, भुखमरी फैल जाती तो पुरवासी आचार्य (पूजा-पाठ करने वाले) के पास जाते और रक्षा के लिए प्रार्थना करते। आचार्य अशिव आदि की शांति के लिए एक पुतला बनाते, तत्पश्चात् मंत्रपाठ द्वारा उसका छेदन कर कुल देव को प्रसन्न करते थे। इस प्रकार कुल-देवता की शांति पर उपद्रव भी शांत हो जाता था।१३० पी.वी. काणे के अनुसार प्राचीन काल में इन्द्र, यम, वरुण, ब्रह्म आदि के साथ घरेलू देवता (कुल देवता)
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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