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________________ प्रस्तावना बार पुनः प्रयास किया। इन वाचनाओं से आगम ग्रन्थों में कुछ पाठान्तर आ गये जिसके कारण वीरनिर्वाण संवत् ९८० या ९९३ (५१२ या ५२५ ई.) में देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण ने वलभी में श्रमणसंघ को एकत्र कर उपलब्ध समस्त श्रुत को ग्रन्थबद्ध किया। आज जो ४५ श्वेताम्बर जैन आगम उपलब्ध हैं वे इसी वाचना की देन हैं। इस प्रकार बृहत्कल्पसूत्र जिस पर संघदासगणि ने भाष्य लिखा है और इस पुस्तक का आधारग्रंथ है, अंगप्रविष्ट के अन्तर्गत एक छेदसूत्र है और इसके रचयिता आर्य भद्रबाहु एक चतुर्दशपूर्वधर आचार्य थे। छेदसूत्रों में बृहत्कल्पसूत्र का स्थान ___ जैन आगमों की जो सूची ऊपर दी गयी है उनमें बृहत्कल्प, छेदसूत्रों के वरिष्ठता क्रम में दूसरे स्थान पर है। छेद का अर्थ कमी या दोष होता है और जब किसी साधु के आचार्य में कोई दोष लगता है तब उसके साधुजीवन में कुछ कमी हो जाती है और उसे प्रायश्चित्त करना पड़ता है। चूँकि छेदसूत्रों में इन्हीं प्रायश्चित्तों का विधान है अतः वे छेदसूत्र कहलाते हैं। छेदसूत्रों में जैन साधुओं के आचार का सूक्ष्म विवेचन है। इस विवेचन को निम्न चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- उत्सर्ग (सामान्य विधान), अपवाद (परिस्थितिजन्य छूट), दोष (उत्सर्ग अथवा अपवाद का भंग) और प्रायश्चित्त (व्रतभंग के लिए समुचित दण्ड)। जैन संस्कृति का मूल आधार श्रमण धर्म है। श्रमण धर्म की सिद्धि के लिए आचार्य धर्म का पालन करना अनिवार्य है और आचार्य धर्म को समझने के लिए छेदसूत्रों का ज्ञान आवश्यक है। दूसरे शब्दों में छेदसूत्रों के ज्ञान के बिना जैन सम्मत आचार धर्म का पालन करना असम्भव है। अन्य छेदसूत्रों की तरह बृहत्कल्पसूत्र में भी जैन साधुओं के आचार सम्बन्धी विधि-निषेध, उत्सर्गअपवाद, तप-प्रायश्चित्त आदि का विवेचन है लेकिन बृहत्कल्पसूत्र में साधुसाध्वियों के जीवन एवं व्यवहार से सम्बन्धित अनेक महत्त्वपूर्ण बातों का सुनिश्चित विधान किया गया है जो इसकी अपनी विशेषता है। इसी विशेषता के कारण इसे कल्पशास्त्र (आचारशास्त्र) कहा जाता है।५ छेदसूत्रों में महत्त्वपूर्ण माने जाने के कारण ही जैन ग्रन्थकारों ने बृहत्कल्प पर कई भाष्य और वृत्तियाँ लिखीं जिनमें संघदासगणि का भाष्य सबसे प्राचीन और महत्त्वपूर्ण है। बृहत्कल्पसूत्रभाष्य और भाष्यकार संघदासगणि आगम ग्रन्थों के गूढ़ अर्थ को प्रतिपादित करने के लिए वलभी वाचना के बाद उन पर विशद व्याख्या-साहित्य की रचना की गयी जिन्हें हम निम्न पाँच
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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