SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धार्मिक जीवन १०७ पुरुष से मिलना निषिद्ध था, इसके निराकरण हेतु ही यह नियम बनाया गया था। 'बृहत्कल्पभाष्य' में दुराचारी व्यक्तियों के प्रवेश के सभी प्रयत्नों को विफल करने का निर्देश दिया गया था। इसके अतिरिक्त भिक्षु को ऐसे उपाश्रय या शून्यगारों में बाहर से साध्वियों की रक्षा करने को कहा गया था। शील के नष्ट होने की सम्भावना तभी रहती थी जब साध्वी के साथ कोई सम्भोग कर ले। निशीथचूर्णि में सम्भोग के कारणों में क्रोध, मान, माया, लोभ, राग आदि का वर्णन किया गया है। ब्रह्मचर्य के खण्डित होने पर साधु-साध्वी को कठोरतम दण्ड देने का विधान किया गया है। ब्रह्मचर्य महाव्रत का भंग चाहे वह किसी परिस्थिति में हुआ हो, बिना प्रायश्चित्त किये उससे छुटकारा नहीं मिल सकता था।६ 'बृहत्कल्पभाष्य'८७ में इस विषय में कुछ उदार नियम मिलते हैं। यदि किसी साध्वी के अपहरण होने पर इसकी सूचना यथाशीघ्र आचार्य को दी जाय, यदि साध्वी गर्भवती हो जाय तो उसे संघ से न निकाला जाय बल्कि दोषी व्यक्ति को दण्ड दिलाने का प्रयास किया जाय। गर्भ की बात न मालूम होने पर उसे श्रावक के यहाँ रख दिया जाय। उपर्युक्त उद्धरण से स्पष्ट है कि उस समय साध्वियों के शील भंग होने पर भी जैनसंघ में उनकी सम्मानजनक स्थिति थी। 'बृहत्कल्पभाष्य' में उल्लिखित है कि भिक्षु-भिक्षुणियों के लिए पाप कर्म न करना ही वस्तुतः परम मंगल है।८ पावाणं जदकरणं, तदेव खलु मंगलं परमं। भिक्षु जीवन अत्यन्त नियमित और अनुशासनशील था। मृतक-संस्कार 'बृहत्कल्पभाष्य' में भिक्षुओं के शव-संस्कार का भी उल्लेख हैं। मृतक शरीर को एक कपड़े से ढक दिया जाता था तथा मजबूत बांसों की पट्टियों पर श्मशान-स्थल को ले जाया जाता था। शव को ढंकने के लिये सफेद कपड़ों की तीन पट्टियाँ लगती थीं- एक शव के नीचे बिछाने के लिए, दूसरा शव को ऊपर से ढंकने के लिए तथा तीसरा बांस की पट्टियों से शव को बाँधने के लिए। मलिन या रंगीन कपड़े से शव को ढकना निषिद्ध था। मृत्यु हो जाने पर शव को तुरन्त बाहर ले जाने का विधान था,परन्तु यदि हिमवर्षा हो रही हो, चारों ओर जंगली जानवरों का डर हो, नगर-द्वार बन्द हो गया हो, मृतक अत्यन्त विख्यात हो, मृत्यु के पहले यदि उसने मासादिक उपवास किया हो तथा राजा अपने सेवकों के साथ नगर में आ रहा हो तो शव को कुछ समय तक रोक देने का विधान था।९
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy