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________________ धार्मिक जीवन १०१ भी रखने का विधान था।२७ रजोहरण के पाँच प्रकार भी बताये गये हैं- और्णिक (ऊन का), औष्ट्रिक (ऊँट के रोम का), सानक (सन का), वच्चकाचिप्पक (पेड़ की छाल का) और मुंजचिप्पक (सरपत या मूंज का)।३८ उपाश्रय घास आदि के बने हुए घरों (उपाश्रय) में जिनमें मनुष्य अच्छी तरह खड़ा हो सकता हो, साधु-साध्वियों के हेमन्त से ग्रीष्म ऋतु के बीच रहने का विधान किया गया है। इसी तरह जिन उपाश्रयों की उँचाई मनुष्य के दो हाथ से अधिक हो उनमें उनके वर्षा ऋतु में ठहरने का विधान किया गया है।३९ वर्षावास करने के बाद श्रमण-श्रमणियों को शेष आठ महीने ग्राम आदि में विचरण करते हुए रुकने की जगह यानी उपाश्रय खोजनी पड़ती थी। यदि ग्राम, नगर आदि दुर्ग के अन्दर और बाहर इन दो भागों में बसे हुए हों तो अन्दर और बाहर मिलाकर एक क्षेत्र में दो मास भिक्षु रह सकते हैं। इसी तरह की स्थितियों में साध्वियों को चार माह तक रहने का विधान किया गया है।४१ एक चहारदिवारी और एक द्वार वाले ग्राम, नगर आदि में निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को एक साथ रहना अकल्प्य है। २ अतः श्रमण-श्रमणियों को अनेक चहारदिवारी और अनेक द्वार वाले ग्राम, नगर आदि में रहना चाहिए और साथ ही उन स्थानों में रहना चाहिए जहाँ भिक्षाभूमि, स्थंडिल भूमि, विहार भूमि आदि भिन्न हों।४३ श्रमण-श्रमणियों को घर के अन्दर अथवा दो घरों के बीच में रहना, सोना, बैठना आदि भी वर्जित है।" ___'बृहत्कल्पसूत्र' में ऐसे उपाश्रय में भिक्षुणी को ठहरने की अनुमति दी गयी है, जिसमें आने जाने का मार्ग गृहस्थ के घर के मध्य में से होकर हो।५ इसी प्रकार भिक्षुणी के प्रतिबद्धशय्या वाले उपाश्रय में रहने का विधान है।६ प्रतिबद्धशय्या वह है जिसकी दीवालें अथवा उसका कोई भाग गृहस्थ के मकान से जुड़ा हो। इन विरोधी नियमों का समाधान करते हुए कहा गया है कि साध्वियों को ऐसे उपाश्रय में ठहरने का अभिप्राय इतना ही है कि यदि निर्दोष उपाश्रय न मिले तो साध्वी उसमें ठहर सकती है। ऐसे उपाश्रय जिनमें पितामही, मातामही, बुआ, बहन, लड़की आदि रहती हो उनमें भी साध्वी रह सकती है। क्योंकि उनके साथ रहने में भिक्षुणियों की संयम विराधना की कोई संभावना नहीं रहती है।४८ आपणगृह, रथ्यामुख, शृङ्गाटक, चतुष्क, चत्वर, अंतरापण आदि के निकट बने हुये उपाश्रय में भिक्षुणियों के रहने का निषेध किया गया है क्योंकि ऐसे सार्वजनिक स्थानों में बने हुए उपाश्रयों में रहने वाली श्रमणियों के मन में युवक, वेश्याएँ,
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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