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________________ (५९) करे, इसों में इष्ट प्राप्ति होगी। देवता के वचन को सुनकर चित्रवेग ! हमारे चित्त में बहुत संतोष हुआ, तब मैंने कहा, पुत्रि ? अब इष्ट प्राप्ति में संदेह छोड़कर कपट से भी माता-पिता का कहना मान । देवता की बात किसी से कहना नहीं, नहीं तो जान लेने पर वह राजा कुछ प्रतिकूल काम कर बैठेगा। सब से पहले तेरे वल्लभ का अनिष्ट करेगा । तब कनकमाला ने कहा, यह सत्य है, इसमें कोई संदेह नहीं, अब आप इस कार्य के लिए प्रयत्न करें, तब मैंने जाकर चित्रमाला से कहा कि बहुत समझाने पर वह मान गई और वह कहती है कि पिताजी जो कहते हैं और माताजी जो चाहती है मैं उसको सर्वथा मानती हूँ, तब प्रसन्न होकर चित्रमाला ने अपने स्वामी से कनकमाला को बात बताई । वे अत्यंत खुश हो गए और उन्होंने कहा कि हमारी बात मानकर उसने पितामाता के प्रति अपनी अपूर्व भक्ति दिखलाई है, तब प्रातःकाल में बड़े उत्साह के साथ कनकमाला की वरण-विधि समाप्त हुई। ऐसी स्थिति में कनकमाला के वचन से आपकी प्रसन्नता के लिए मैं उन बातों को कहने के लिए आपके पास आई हूँ, इसलिए सुंदर ! वरण की बात से आप दुःखी न हों, क्यों कि देवतावचन कभी मिथ्या नहीं होता। कनकभाला ने कहलवाया है कि " नाथ ! आपको छोड़कर इस जन्म में मैं किसी के हाथ से अपना हाथ नहीं लगाऊँगी । देवता-वचन यदि सत्य हुआ तो मैं प्राणधारण करूँगी अन्यथा फिर मरण ही मेरा शरण होगा । हे सुप्रतिष्ठ ! सोमलता की बात सुनकर मेरे चित्त में कुछ शांति हुई और फिर मैंने मन में सोचा कि केवली के वचनानुसार भी पूर्वभव स्नेहबद्धा होने से यह मेरी भार्या होगी क्यों कि दर्शनमात्र से हम दोनों का यह पारस्परिक अनुराग अवश्य पूर्वभव संबंध को
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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