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________________ (४३) मन की बात क्यों नहीं करते ? इस प्रकार बहुत पूछने पर कुमार ? मैंने कहा कि मैं नहीं जानता हूँ कि मेरा शरीर इतना अस्वस्थ क्यों है ? हँसकर उसने कहा कि मैंने पहले ही कहा था कि ऐसी स्त्रियों का दर्शन अच्छा नहीं होता, उसी के नेत्रदोष से आपको इतना संताप हो रहा है । अभी आपकी पीठ पर हाथ फिराएगी जिससे आपको सुख मिलेगा ? निःश्वास लेकर मैंने कहा कि मैं प्राण संकट में पड़ा हूँ और आप भाई होकर भी मज़ाक कर रहे हैं | उसने कहा कि जब मैं आपकी स्थिति को जानता नहीं हूँ, आप स्वयं भी कुछ बतला नहीं रहे हैं तो मैं कर ही क्या सकता हूँ? मैंने कहा कि उससे कुछ कहा जाता है जो नहीं जानता है आप तो जानते हुए भी परिहास की बातें करते हैं, इस तरह जब हम दोनों कुछ-कुछ बातें कर रहे थे इतने में गृहदासी चूतलता ने आकर कहा कि कनकलता की दासी सोमलता आपके दर्शन के लिए द्वारदेश पर खड़ी है । भानुवेग ने उससे कहा कि उसको जल्दी भेजो । सोमलता आई और उसका सत्कार किया गया, उसने एकांत करने को कहा तब चूतलता को बाहर कर दिया, सोमलता ने कहा कि आप लोग शरणागत वत्सल हैं, मुझे भयानक संकट से बचाइए, हर्षित होकर मैंने कहा, भद्रे ? क्या संकट है ? उसने कहा कि मैं काम संकट में पड़ी हूँ, तब कुछ हँसते हुए भानुवेग ने कहा कि तुम्हारे शरीर की संधियाँ शिथिल पड़ गई हैं । कांति नष्ट हो गई है, सभी दाँत टूट गए हैं, बाल सफेद हो गए हैं, त्रिवली नीचे लटक आई है। ज़रा जर्जरित तुम को देखते ही दूर भाग जायगा तो फिर तुम को काम से क्या भय है ? तब उसने कहा कि आप हँसे नहीं जिस प्रकार मैं काम-संकट में पड़ी हूँ आपको बतलाती हूँ आप सुनें, उद्यान से क्रीड़ा करके कनक
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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