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________________ (१२) सुमति ज्यौतिषी के वचन के याद कर मुझे अत्यंत हर्ष हुआ इसके अलावा आप मेरे संबंध में और कुछ विकल्प न करें, चित्रसेन की बात सुनकर राजा की शंकाएँ छिन्नभिन्न हो गईं, चित्र के रूप से विस्मित होते हुए राजा ने कहा कि क्या उस कन्या का सचमुच ही ऐसा सौभाग्यपूर्ण रूप है ? चित्रसेन ने कहा कि इस चित्र में तो केवल रूप का थोड़ा-सा दिग्दर्शन कराया गया है, उस कन्या के यथास्थित रूप को कौन चित्रित कर सकता है ? उस कन्या ने तो देवांगनाओं के रूप को भी जीत लिया है, उसके वचन सुनकर प्रसन्न होकर राजा ने अपने शरीर से निकालकर आभूषण वस्त्रादि उसको दिए, राजा से आज्ञा लेकर वहाँ से चलकर कुशाग्रपुर पहुँचकर चित्रसेन ने नरवाहन राजा से सारी घटना कह सुनाई, राजा ने अपनी बहन कमलावती को पर्याप्त धन, दासी-दास आदि देकर अमर केतु राजा को स्वयं वरने के लिए विदा कर दिया। कमलावती कुमारी भी श्रीकांता आदि सखियों के साथ तथा सकल पारिवारिक लोगों के साथ मिलजुलकर इर्ष शोकाकुल होकर चली, हस्तिनापुर पहुंचने पर क्षत्रिय कुल की विधि के अनुसार बड़े उत्साह के साथ शुभलग्न में राजा ने कमला. वती के साथ विवाह किया, कमलावती इंद्र की इंद्राणी की तरह राजा की प्राणप्रिया महादेवी बनीं, उसके साथ विषय सुख का अनुभव करते हुए तथा नीतिपूर्वक प्रजा का पालन करते हुए राजा के दिन स्वर्ग में इंद्र की तरह उस नगरी में आनंदपूर्वक बीतने लगे। ___ उसी हस्तिनापुर नगर में नागरिकों में श्रेष्ठ सब शास्त्रों में कुशल राजा का इष्ट धन धर्म नाम का एक सेठ रहता था, वह याचकों को अभिलाषित वस्तुओं को देने में दानवीर था, और
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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