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________________ (१९०) : दत्त नामक सार्थवाह की धन्यान्नामक भार्या की कुंक्षि से उत्पन्न हुआ उसका नाम सुबंधु पड़ा, मल्हनजीव समुद्रदत्त की भार्या सुदर्शना की कुक्षि से पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ । उसका नाम धनपति रखा गया। इधर उसी ऐरावत क्षेत्र में विजया नाम की एक नगरी है, उसमें धनभूति नाम का समृद्धिशाली सार्थवाह रहती था। सुंदरी नाम की उसकी भार्या थी, जिसमें उसे सुधर्म नाम का एक पुत्र था, चंदन का जीव भी सुधर्म का सहोदर छोटा भाई Era नाम का हुआ। उसी ऐरावत क्षेत्र में सुप्रतिष्ठपुर में हरिदत्त नाम का एक धनी वणिक था । उसकी भार्या विनयवती नाम की थी । और वसुदत्त नाम का पुत्र था । लक्ष्मी जो जंगल में सिंह से मारी गई थी । तिर्थचयोनियों में परिभ्रमण करके विनयवती की कुक्षि से कन्यारूप में उत्पन्न हुई । उसका नाम सुलोचना रक्खा गया, चंदन की भार्या संपदा भी मरकर सुलोचना की बहन अनंगवती हुई। इतने में मल्हन भार्य सरस्वती भोर उन दोनों की छोटी बहने वसुमती नाम से उत्पन्न हुई। इस प्रकार वे तीनों भवितव्यतावश एक ही माता की कुंक्षि से उत्पन्न होकर प्रेम से रहने लगीं । यौवन प्राप्त होने पर अनुरूप वरों के साथ तीनों का विवाह किया गया जिसमें सुलोचना का विवाह निम्नजीव सागरदत्त पुत्र सुबंधु के साथ, धनभूति के पुत्र धनवाहन के साथ अनंगवती का और समुद्रदत्तपुत्र मल्हन जीव के साथ वसुमती का विवाह हुआ। भवितव्यावश सुलोचना को छोड़करे इन दोनों को विवाह पूर्वभव वल्लभ के साथ ही हुआ । पूर्वभव के अभ्यास से सुलोचना को चाहता था किंतु सुलोचना का वह वल्लभ नहीं था इसीप्रकार दिन बीतने लगे, एक समय कनकरथ घोड़ेपर सवार होकर नगर में राजमार्ग से निकल रहा था नगर की *
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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