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________________ (१६४) से छुड़ाइए । इस प्रकार जब मैं विलाप कर रही थी, तब वह मुझे आश्वासन देने लगा कि सुंदरी ? मैं तुम्हारे साथ कुछ भी विरूप कार्य नहीं करूँगा, तुमको में प्राण समान प्रिय मानता हूँ, तुम्हारे रूप को देखने मात्र से अनुरक्त होकर मैं तुम्हें हरकर ले जा रहा हूँ। मैं वैताढ्यपर्वत निवासी मकर केतु नाम का विद्याधर हूँ, मेरे साथ तुम अनेक भोगों को भोगोगी, तुम क्यों बेकार दुःखी हो रही हो? उसका नाम मकरकेतु सुनने पर मेरे मन में कुछ संतोष हुआ, फिर मैंने सोचा कि वह तो अभी विद्या साधन करता है तो फिर वह यहाँ कैसे आएगा? अथवा मेरा ऐसा भाग्य कहाँ ? जो में प्रत्यक्ष देख सकूँगी, इस प्रकार जब मैं सोच रही थी, इतने में वह भूमि पर उतरा और मुझे कदलीवन में रक्खा । इतने में मुझे यह बतलाने के लिए कि वत्से ? ठीक से देख, यह तेरा वल्लभ नहीं हैं, सबेरा हो गया और मैंने उसका श्याम शरीर देखा, देखते ही मैंने निश्चय कर लिया कि यह मेरा वल्लभ नहीं हैं क्यों कि चित्र में भी उसका स्वरूप कामदेव से अधिक सुंदर था, यह सोचकर जब मैं रोने लगी तब मुझे रोती देखकर वह कहने लगा कि प्रिये ? सुनो-- वैताढय पर्वत पर गंगावर्त नाम का एक प्रसिद्ध विद्याधरों का नगर है । जिसमें राजा श्री गंधवाहन अत्यंत प्रसिद्ध थे । मयणावली देवी से उनके नहवाहन मकरकेतु तथा मेघनाद नामक तीन पुत्र हुए । नरवाहण जब युवावस्था में आया और उसने अनेक विद्याएँ प्राप्त की, तब उसके लिए कनकमाला नाम की अत्यंत सुंदरी कन्या का वरण किया गया । विवाह समय में चित्रवेग ने उसका अपहरण किया और उसके साथ विवाह कर लिया। उसका पीछा करके नागिनी विद्या से उसे बांधकर, कनक
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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