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________________ (३) से प्रकाशित होता है उसी प्रकार दुर्जन दोष देने में ही आनंद का अनुभव करता है, काव्य चाहे कितना ही सुंदर क्यों न हो किंतु दुर्जन तो उसके दोषों का ही ग्रहण करता है, ऊँट के मुंह से जीरा कदापि नहीं निकलता, खूब तपे हुए लोहे के पात्र में पड़ा जलबिंदु जिस प्रकार अपने अस्तित्व को नष्ट कर देता है उसी प्रकार दुर्जन सभा में पड़ा हुआ सुंदर काव्य प्रतिष्ठा को प्राप्त नहीं होता है, शक्कर के रस से सींचने पर भी जिस प्रकार नीमवृक्ष अपने कड़वेपन को नहीं छोड़ता है उसी प्रकार दुर्जन के प्रति की गई कवियों की प्रार्थना विफल है, अथवा दुर्जन के भय से कथा-रचना छोड़ देना उचित नहीं जुओं के भय से क्या वस्त्र छोड़ देना उचित हैं ? दुर्जनों के प्रतिकूल रहने पर भी कवियों द्वारा काव्य बनाना क्या अनुचित है ? उल्लुओं को रुचिकर नहीं होने पर भी क्या सूर्य नहीं उगता है ? जिस प्रकार चंद्रमा स्वभाव से ही सारे जगत को धवलित करता है उसी प्रकार सज्जन विना प्रार्थना के ही कवियों के काव्य में गुणों को प्रकाशित करता है, अतःसज्जन प्रशंसा ही उचित है, मेरे द्वारा कहीं जाती हुई कथा को सज्जन अवश्य ध्यान से सुनें -- लाख योनियों से युक्त अनारपार घोर संसार में मनुष्यत्व को प्राप्त कर भाविक जीवों को जिनेंद्र द्वारा कथित शुद्ध धर्म में उधम करना चाहिए, आभ्यंतर शत्रु राग द्वेष पर विजय प्राप्त करना ही शुद्ध धर्म है, उन पर विजय प्राप्त करने से ही सुख मिलता हैं, उनसे जीते जानेवाले को दुःख ही प्राप्त होता है, रागद्वेष विजय का संधान करनेवाली १६ परिच्छेदों से युक्त सुरसुंदरीचरित नामक कथा प्राकृत गाथाओं से कही जाती है, अबुध बोधन
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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