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________________ (१०३) दयिता के अपहरण होने से वह अत्यंत क्रोधित हो उठा है और बहुत विद्याधरों के साथ आपका वध करने के लिए चला है। और वह आपके पीछे है, अतः प्राणनाश करनेवाली विपत्ति आपके ऊपर आ रही है, अतः आप यह मणि ले लें और प्रयत्न से अपने बाल के अंदर इसको बाँधकर रखिए, मणि रखने से नहवाहण की विद्याएँ बेकार हो जाएंगी, यदि कभी वेदना शांत न हो, तो इस मणि के जल से सेंक करने पर पीड़ा दूर हो जाएगी। आप इस मणि को बरावर साथ रक्खेंगे। आप चिंता नहीं करें, मैं भी आपकी सहायता करूँगा, अभी मैं किसी खास कार्य से जा रहा हूँ, वहाँ से लौटने पर आपको सारी बातें बतलाऊँगा । दूसरी बात यह है कि वह विद्याधर विद्याबलपूर्ण है, अतः आप उसके साथ युद्ध नहीं करेंगे। उसके साथ युद्ध करने से निश्चय आपकी मृत्यू हो जाएगी। सिंह संकुचित । शरीरवाला होकर ही हाथी के ऊपर आक्रमण करता है । क्या उससे उसका पुरुषार्थ कम माना जाता है ? अवसर प्राप्त कर के, विद्या साधन करके पीछे जैसा अच्छा लगे, सो आप करेंगे। यह दिव्यमणि उसके प्रभाव को अवश्य कम करेगी, देव के इस प्रकार कहने पर मैंने हाथ जोड़कर कहा कि जो आपकी आज्ञा उस देव ने अपने हाथ से मेरे मस्तक में दिव्यमणि बाँध दी और मुझे आशीर्वाद देकर वहाँ से प्रस्थान किया। सुप्रतिष्ठ ! मणि बाँधते ही मेरी चिंता दूर हो गई, सारा भय चला गया। दिव्यमणि समर्पण नाम । सप्तम परिच्छेद समाप्त
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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