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________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म के प्रमुख केन्द्र यह संरक्षित क्षेत्र है ।" डॉ. स्मिथ " ने कंकाली क्षेत्र को 15000.0 सेंमी. लम्बा तथा 5500.0 सेंमी. चौड़ा बताया है परन्तु कनिंघम महोदय'" ने 12000.0 सेंमी. लम्बा तथा 8800.0 सेंमी. चौड़ा बताया है । समय-समय पर इस टीले का उत्खनन कार्य होता रहा है। इन उत्खननों में विशाल मात्रा में जैन तीर्थंकर की मूर्तियाँ, आयागपट्ट, स्तम्भ, छत्र, स्तम्भ-शीर्ष, वेदिका - स्तम्भ, उष्णीष, तोरण- खण्ड, तोरण- शीर्ष, अभिलिखित चरण-चौकी एवं अन्य कलाकृतियाँ प्राप्त हुई हैं। सन् 1871 ई. मार्च और नवम्बर माह में 'आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया' के डायरेक्टर जनरल ए. कनिंघम" ने सर्वप्रथम कंकाली टीले के पूर्वी भाग का उत्खनन कार्य करवाया तथा उन्होंने पुनः 1881, 1882, 1883 ई. में भी उत्खनन कार्य किया ।20 जिसमें जैन सामग्री मिली । 51 1871 से 1877 ई. के मध्य ग्राउस महोदय ने उत्खनन कार्य किया और अनेक कलाकृतियाँ प्रकाश में आईं। " 1888 से 1891 ई. के मध्य फ्यूरर महोदय को कंकाली के उत्खनन कार्य में ईटों का एक जैन मन्दिरों के अवशेष तथ अन्य पुरावशेष प्राप्त करने में सफलता मिली जो जैन धर्म एवं उसके स्थापत्यकला के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी के स्रोत है। 2 ब्यूहलर महादेय" का महत्वपूर्ण योगदान यह है कि कंकाली से प्राप्त अभिलेखों को एक प्रमुख पुस्तक में लिपिबद्ध किया है। ये सभी अभिलेख 150 ई. पूर्व से 1023 ई. के हैं और पुरातत्व की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण हैं। कंकाली से केवल जैन धर्म से सम्बन्धित कलाकृतियाँ ही नहीं प्राप्त हुई हैं अपितु वैदिक एवं बौद्ध धर्म से भी सम्बन्धित पुरावशेष उपलब्ध हुए हैं। कंकाली टीले से उत्खनित सामग्री राजकीय संग्रहालय मथुरा, राज्य संग्रहालय लखनऊ में संग्रहीत हैं । इन कलाकृतियों में तीर्थंकरों के
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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