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________________ विषय का महत्व एवं अध्ययन स्रोत ___ कंकाली से प्राप्त देवनिर्मित जैन स्तूप तीसरी शताब्दी ई. पू. का है। कला की दृष्टिकोण से यह अत्यन्त सुन्दर एवं प्राचीन है। मथुरा से अभिलेखों की भी प्राप्ति हुई है। शक नरेश महाक्षत्रप शोडास का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अभिलेख है। इसकी तिथि 72 दी गई है। कंकाली से एक नर्तक की पत्नी शिवयशा ने एक अभिलिखित आयागपट्ट स्थापित करवाया था प्राप्त हुआ है। इससे पता चलता है कि शूरसेन जनपद में विभिन्न वर्ग के लोग जैन धर्म में आस्था रखते थे। शूरसेन जनपद से इसी प्रकार के और भी जैन अभिलेख प्राप्त हुए हैं जो शूरेसन जनपद में जैन तीर्थंकरों की उपासना के निमित्त भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा आयागपट्ट निर्मित करवाने का उल्लेख है। इन आयागपट्टों पर विभिन्न तीर्थंकरों की उपासना के निमित उनके अलग-अलग लांछन निर्मित हैं।48 मथुरा कला के अन्तर्गत चार प्रकार की प्रतिमाएं निर्मित हुई हैं। प्रथम कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ी प्रतिमाएं, दूसरी पद्मासन में बैठी हुई प्रतिमाएं, तीसरी खड़ी हुई सर्वतोभद्रिका प्रतिमाएं और चौथी उसी की भांति आसनस्थ प्रतिमाएं।19 कुषाण काल के कुछ अभिलेखों में जैन श्रमणों के गण, कुल एवं शाखा के भी साक्ष्य मिलते हैं इससे यह महत्वपूर्ण तथ्य ज्ञात होता है कि शूरसेन जनपद का जैन संघ अत्यधिक सुसंगठित था।50 जैन प्रतिमाविज्ञान की दृष्टि से शूरसेन जनपद का महत्वपूर्ण स्थान है। शूरसेन जनपद में ही मथुरा कला का जन्म एवं विकास हुआ। __ शुंग-कुषाण युग में जैन आयागपट्ट एवं प्रतिमाएं प्रचुर संख्या में निर्मित हुई। भगवान ऋषभ की लटकती जटा, पार्श्वनाथ के सात सर्पफण, जिनों के वक्ष स्थल पर भी श्री वत्स चिन्ह और शीर्ष भाग पर उष्णीष निर्मित करने का श्रेय मथुरा कला को जाता है। जिन-मर्तियों में अष्ट-प्रतिहार्यों, जैसे-सिंहासन, चामरधर, प्रभामण्डल, छत्रत्रयी, देवदुन्दुभि, सुरपुष्ट-वृष्टि, दिव्यध्वनि उत्कीर्ण करने
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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