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________________ संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य आचमनयतना एक दूसरी यतना भी देख लें - श्रमण-श्रमणी जहाँ मल-मूत्र विसर्जित करते हैं वहीं आचमन करने की (मलस्थान को परिमित जल से साफ करने की) शास्त्रकारों ने मनाई फरमाई है। ये रहे निशीथसूत्र के परमपूत वचन : "जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिहवेत्ता तत्थेव आयमति, आयमंतं वा सातिजति.... तं सेवमाणे आवज्जति मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं...।" (चतुर्थ उद्देशक, सूत्र-१०९) "तत्थेव त्ति थंडिले, जत्थ सण्णा वोसिरिया" - निशीथचूर्णि यह व्यवस्था दर्शाने के पीछे विशेष कारण अनेक हो सकते हैं। किंतु मूलभूत कारण यही हो सकता है कि - जहाँ संज्ञा (=मल) का व्युत्सर्जन किया गया है वहीं आचमन-निर्लेपन करने से द्रव-पानी मल पर गिरने से लंबे समय तक वह आर्द्र ही रहेगा, कि जो संमूर्छिम मनुष्य की विराधना का कारक है। अतः थोड़ी दूर जा कर आचमन करने का विधान शास्त्रकारों के द्वारा किया गया ज्ञात होता है। श्रीमधुकरमुनि की राहबरी तले श्रीनिशीथसूत्र के हुए अनुवाद में भी प्रस्तुत सूत्र के विवेचन में यह बात स्पष्ट की गई है। “मल त्यागने के बाद उसके ऊपर ही आचमन करने से गीलापन अधिक बढ़ता है जिससे सूखने में अधिक समय लगने से विराधना की संभावना रहती है। अत: कुछ दूरी पर आचमन करना उचित है।" (पे.१२२) निशीथचूर्णिकार ने प्रस्तुत में 'संमूर्छिम मनुष्यों की यतना के लिए यह विधान है, इस यतना का अर्थात् आचमन अन्यत्र करने के ९०
SR No.022666
Book TitleSamurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijaysuri, Jaysundarsuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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