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________________ ७० त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी तपागच्छ की सामाचारी का आदर-सेवन करें यही सिफारिश। प्रश्न : त्रिस्तुतिक मतवाले अनुष्ठानों के द्रव्यानुष्ठान तथा भावानुष्ठान ये दो भेद करते हैं। ये सच्चे हैं या झुठे हैं ? उत्तर : त्रिस्तुतिक मतवालों ने अनुष्ठानों के जिस प्रकार निराधार काल्पनिक भेद किए हैं, ऐसे भेद शास्त्र में कहीं भी देखने को नहीं मिलते। इस प्रकार के भेद अपने मत की पुष्टि के लिए स्वयं उन्होंने कल्पना से उत्पन्न किए हैं और निराधार है। हां, अनुष्ठान के द्रव्यानुष्ठान तथा भावानुष्ठान ये भेद शास्त्रोमें अवश्य किए हैं। द्रव्यक्रिया-भावक्रिया, द्रव्यपूजा-भावपूजा ये दो भेद भी किए गए हैं। परन्तु किसीभी शास्त्रमें देव-देवी के कायोत्सर्ग एवं उनकी स्तुति के विधान एवं निषेध के आश्रयमें अनुष्ठान के दो विभाग नहीं किए गए हैं । अर्थात् जिस अनुष्ठानमें देव-देवी का कायोत्सर्ग एवं स्तुति बोली जाती हो उसे द्रव्यानुष्ठान कहा जाता है और जिसमें देव-देवी का कायोत्सर्ग न होता हो तथा उनकी स्तुति न बोली जाती हो वह भावानुष्ठान कहा जाता है। ऐसे भेद किसी भी शास्त्रमें कहीं देखने को नहीं मिलते। प्रश्न : मुनिश्री जयानंदविजयजी ने अपनी 'अंधकार से प्रकाश की ओर' पुस्तक के पृष्ठ-५ पर एक प्रश्न के उत्तरमें अपने मत की पुष्टि के लिए अनुष्ठान के दो भेद बताए हैं। यह प्रश्नोत्तर निम्नानुसार है। • "द्रव्यानुष्ठान और भावानुष्ठान में क्या भेद है? द्रव्यानुष्ठान के दो अर्थ होते है। १. भाव रहित अनुष्ठान द्रव्यानुष्ठान, २. जो अनुष्ठान द्रव्य की मुख्यता वाला हो वह द्रव्यानुष्ठान, जैसे प्रतिष्ठा, दीक्षा, उपधान आदिमें जो नन्दीकी क्रिया होती है, उसमें द्रव्य की मुख्यता होने से उन अनुष्ठानों को द्रव्यानुष्ठान कहा जाता है। और जिसमें केवल भावकी ही मुख्यता हो जैसे प्रतिक्रमण, देववंदन आदि जिसमें सावध अनुष्ठान का
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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