SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी योग छे. परमात्मा साथे तादात्म्य साधवा माटे भावक्रियारुप चैत्यवंदन परम आलंबन छे. आथी ज सुप्रसिद्ध शास्त्रकार परमर्षि पू.आ.भ.श्री हरिभद्रसूरिजीए ललितविस्तरा ग्रंथमां चैत्यवंदनने उत्तम कोटीनुं कर्त्तव्य जणाव्युं छे. तथा च तत्पाठः ॥ ...... न चातः परं कृत्यमस्तीत्यनेनात्मानं कृतार्थमभिमन्यमानो भुवनगुरौ, विनिवेशितनयनमानसोऽतिचारभीरुतया सम्यगस्खलितादिगुणसम्पदुपेतं तदर्थानुस्मरणगर्भमेवं प्रणिपातद्ण्डक सूत्रं पठति; तञ्चेदम्-नमोऽत्थुणं अरहंताणमित्यादि। ___ "आ चैत्यवंदन (देववंदन)थी अधिक कोई उत्तम कर्त्तव्य नथी." आवा उत्तम कर्त्तव्यरुप चैत्यवंदननी (देववंदननी) प्राप्ति द्वारा पोताना आत्माने कुतार्थ मानतो (साधक) त्रिभुवन गुरु अरिहंत परमात्मामां चक्षु अने मनने स्थिर करतो अतिचारना भयथी (अतिचार न लागी जाय, तेवा भयथी) सम्यग् अस्खलित आदि गुणसंपदाथी युक्त (अर्थात् सूत्र उच्चारण अस्खलित, अमीलित (अक्षरो एकबीजामां भळी न जवा), अहीनाक्षर, अनत्यक्षर आदि गुणसंपदाथी युक्त) सूत्रना अर्थना स्मरणपूर्वक प्रणिपातदंडक सूत्रने बोले छे. जेम के, 'नमुत्थुणं अरिहताणं' ईत्यादि. ____वळी कोई पण धर्मक्रिया विधिपूर्वक आत्मसन्मुख बनीने, हीनगुणवाला प्रत्ये द्वेषाभाव केळवीने ईर्ष्यादि दुर्भावोने दूर करीने मोक्षप्राप्तिना उद्देशने जीवंत राखीने करवानी छे. धर्मक्रियाओमां विधिनुं घणुं महत्त्व छे. जेम विधिपूर्वक आराधायेलो मंत्र के विद्या ज ईष्ट प्राप्तिनुं कारण बनतुं होय छे, तेम विधिपूर्वक आराधायेली धर्मक्रिया ज आत्मशुद्धिनुं कारण बने छे. अन्यथा नहि. वर्तमानमां धर्मक्रियाओनी केटलीक विधिओ विधिदर्शक ग्रंथोमांथी जाणवा मळे छे. तो केटलीक विधिओ संविग्नोनी आचरणाथी जाणवा मळे छे.
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy