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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी ६५ साध्वी को भी माफी मांगनी है। जैसे अरिहंत परमात्मा का वर्णवाद सुलभबोधित्वकी प्राप्ति में कारणभूत पुण्यकर्म का उपार्जन करता है, वैसे ही सम्यग्दृष्टि देव-देवीका वर्णवाद (देवदेवी को पूर्वभव के ब्रह्मचर्य पालन का यह फल है, शासनकी सुंदर रक्षा करते हैं, गाढ अविरति कर्मका उदय होने के बावजूद जिनमंदिर में मर्यादा नहीं चूकते, इत्यादि वर्णवाद) भी सुलभबोधित्वकी प्राप्ति में कारणभूत पुण्यकर्म का उपार्जन करता है। ____ जैसे अरिहंत परमात्माकी आशातना दुर्लभ बोधित्व का कारण है। वैसे ही सम्यग्दृष्टि देव-देवीकी आशातना भी दुर्लभ बोधित्व का कारण है। (जिससे भवांतरमें जिनधर्मकी प्राप्ति सुलभ बने वह सुलभबोधित्व कहा जाता है और जिससे भवांतरमें जिनधर्मकी प्राप्ति दुर्लभ बने वह दुर्लभ बोधित्व कहलाता है।) प्रश्नः सम्यग्दृष्टि देव-देवी का आदर कैसे करना चाहिए? उत्तर : किसी भी उचित व्यक्ति का आदर शास्त्रानुसारी ही करना है। जैसे साधर्मिक का आदर तिलक आदि करके किया जाता है, वैसे ही देव-देवी के लिए भी समझें। शास्त्रीय प्रणालिका एवं सुविहित परम्परानुसार अधिष्ठायक देवदेवीके लिए निम्नानुसार प्रवृत्ति की जाती है। • जिनमंदिरमें परिकर सहित परमात्मा बिराजमान हो तो परिकरमें अधिष्ठायक देव-देवी की स्थापना पहले से ही होती है इसलिए स्वतंत्र स्थापना नहीं करनी होती है। भगवान परिकर रहित हों तो गभारा के बाहर कोरी मंडपमें अधिष्ठायक देव-देवीकी स्थापना की जाती है। • देव-देवीकी स्वतंत्र देरी अथवा मंदिर बनाना शास्त्रानुसारी नहीं है। • घंटाकर्ण, नाकोड़ा भैरव आदिकी स्थापना शास्त्रानुसारी नहीं है। ये देव
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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