SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी पूर्वोक्त भाव वृद्धि कैसे होगी? उत्तर : उन्हें स्व सम्बंधी कायोत्सर्ग का ज्ञान न हो तो भी उस कायोत्सर्ग से कायोत्सर्ग कर्ता को विघ्नोपशम, शुभकर्म बंध इत्यादि फल प्राप्त होता है। इस शुभकर्म के बल से वैयावच्चकारी आदि सम्यग्दृष्टि देव-देवियों में भाव की वृद्धि होना युक्ति संगत है। (जैसे जीव के पुण्य के बल से अन्य लोगों को उसकी सेवा करने का भाव जागृत होता है, यह सिद्ध है। वैसा ही यहां भी समझें।) प्रश्न: कायोत्सर्गकर्ता के कायोत्सर्ग से विघ्नोपशम, पुण्योपार्जनादिस्वरुपशुभ सिद्ध होते हैं, इसका ज्ञापक कौन है? उत्तर : तादृश शुभ की सिद्धि का ज्ञापक वही कायोत्सर्ग प्रवर्तक सूत्र वचन है। यह सूत्रवचन आप्त पुरुष द्वारा उपदिष्ट होने के कारण व्यभिचारी नहीं है। अर्थात् विकल वचन नहीं है। इसलिए वैयावच्चकारी आदि सम्यग्दृष्टि देवताओं को साधक का उन्हें दृष्टि में रखकर किया गया कायोत्सर्ग भले ही ज्ञात न हो, फिर भी कायोत्सर्ग से शुभ की प्राप्ति होना इस वचन से ही सिद्ध है। ............. ____ नोट : उपरोक्त पाठमें स्पष्ट कहा गया है कि, सम्यग्दृष्टि देवताओंको दृष्टिमें रखकर किया गया कायोत्सर्ग देवताओं को अपने वैयावृत्त्य, शांति-समाधिकरण आदि कर्तव्यों के प्रति अभिमुख बनाता है और इसलिए कायोत्सर्ग सफल है। उपरोक्त पाठमें (पूर्वोक्त) चतुर्थ स्तुति की सार्थकता बताई गई है। साधकको कर्मनिर्जरा करनी है। इसके लिए साधना को वेगवान रखना है। परन्तु विघ्न साधना में अवरोधक बनते हैं। कार्यसफलता हेतु आवश्यक सामग्री चाहिए । वैसे ही प्रतिबंधक का अभाव भी चाहिए । प्रतिरोधक हाजिर हो तो कारण सामग्री के सद्भाव में भी इष्ट कार्य नहीं किया जा सकता। इसलिए कार्य की कारण सामग्री में प्रतिरोधकाभाव का भी समावेश किया है अर्थात् कार्य के
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy