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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी ४७ चक्षु को अप्राप्यकारी क्यों मानते हो ? क्योंकि, नैयायिकों आदि ने उसका विरोध कर चक्षु को प्राप्यकारी माना है। आत्माको परिणामी नित्य क्यों मानते हो ? क्योंकि, नैयायिक आदि दर्शनोंने उसका विरोध किया है । नैयायिकादि ने उसका विरोध कर आत्माको कूटस्थ नित्य माना है । और बौद्धोंने आत्माको एकांत से अनित्य माना है। I दिगंबरों ने वेश, स्त्री मुक्ति एवं केवलज्ञानी को कवलाहार का विरोध किया है। जिसका विरोध हुआ हो, वह निर्विकल्प तरीके से नहीं स्वीकार किया जा सकता, ऐसी आपकी मान्यता है, तो आप वेश का त्याग करोगें; स्त्री की मुक्ति मत मानो न ? और केवलज्ञानी को कवालाहार का निषेध बताओगे न ? स्थानकवासी व तेरापंथियोंने ३२के अलावा आगमोंका विरोध किया है, तो आप भी ३२के अलावा आगमों को निर्विकल्पता से मत स्वीकारो न ? तेरापंथी एवं स्थानकवासियों ने जिन प्रतिमा का विरोध किया है । इस लिए आप भी उनकी तरह जिन प्रतिमा को निर्वकल्पता से स्वीकार न करो न ? स्थानकवासी तथा तेरापंथियोंने पंचांगी का विरोध किया है । तो आप पंचांगी को क्यों मानते हो ? क्योंकि, जिसका विरोध हुआ हो, वह निर्विकल्प ढंग से नहीं माना जा सकता, ऐसा आपका सिद्धांत आपकी पुस्तकों में आपने जगह-जगह बताया है। इसलिए जिसका विरोध हुआ हो वह माना ही नहीं जा सकता है, उसे निर्विकल्पता से नहीं ही स्वीकारा जा सकता, ऐसा कहना उत्सूत्र है । शास्त्रकार परमर्षिने जो पदार्थ जिस प्रकार सिद्ध किया हो और पूर्व श्रुतधर आदि महात्माओंने उसे उसी प्रकार आचरण किया हो, वह सबको
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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