SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी इन दोनों लेखकोंकी बातों के विषय में आप क्या कहना चाहते हैं ? उत्तर : उपरोक्त दोनों लेखकों के लेख सत्यविरोधी हैं। क्योंकि, 'किल' शब्द प्रयोग की चर्चा सत्यविरोधी है। प्रथम लेखकने 'किल' शब्द का 'निश्चय' अर्थ भी किया है, यह व्याकरण - कोष से विरुद्ध है। दूसरे लेखक ने भी 'किल' का निश्चय अर्थ निकालकर ही 'चतुर्थ स्तुतिः किलार्वाचीन' पंक्ति का अर्थ किया है । इसलिए वह भी व्याकरण कोश से विरुद्ध है। क्योंकि....... अमरकोश में 'किल' शब्द के दो अर्थ बताए गए हैं । 'किल संभाव्यवार्तयोः' वार्ता एवं संभावना, दो अर्थ में 'किल' शब्द का प्रयोग होता है। कलिकाल सर्वज्ञ पू. आ. भ. श्री हेमचंद्रसूरिजीने अनेकार्थ संग्रहमें लिखा है कि..... 'वार्ता - संभाव्ययोः किल, हेत्वरुच्योरलीके च' - 'किल' शब्द का प्रयोग वार्ता, संभावना, हेतु, अरुचि व असत्य इन पांच अर्थ में होता है। इस प्रकार अमरकोश - अनेकार्थ संग्रहमें 'किल' शब्द का 'निश्चय' अर्थ किया ही नही गया है। इसलिए उपरोक्त दोनों लेखकों की बात असत्य है । हालांकि, त्रिस्तुतिक मत के लेखक मुनि श्री जयानंदविजयजी ने 'किल' शब्द का अर्थ अनेकार्थ संग्रह के आधार पर ग्रहण किए हैं। परन्तु इसके बावजूद भी पंक्ति का अर्थ अपनी मान्यता के अनुसार किया है। प्रश्न: मुनिश्री जयानंदविजयजी ने वर्तमानमें चार थोय के एक महापुरुष पू. आ. भ. श्री राजशेखरसूरिजी महाराजाके लेख का एक मजबूत प्रमाण तीन थोय के समर्थन में प्रस्तुत किया है, इसके लिए आपके पास कोई उत्तर है । उत्तर : हां, बिलकुल है।
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy