SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० प्रकार है..... त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी निस्सकडमनिस्सकडे, वावि चेइए सव्वहिं थुइ तिण्णि । वेलं व चेइयाणि, विणाओ एक्कक्विया वा वि ॥ (गाथार्थ पूर्ववत्) जिस कारणसें दंडक के अंतमें एक स्तुति कही जाती है, (उससे) इस प्रकार दंडक स्तुति रुप युगल होता है। अन्य ऐसा कहते हैं कि, शक्रस्तवादि पांच दंडक व स्तुति युगल द्वारा सिद्धांत भाषा को लेकर, चार स्तुति करके जो चैत्यवंदना की जाए, वह मध्यम चैत्यवंदना जानें । (२) तथा संपूर्ण परिपूर्ण, वह प्रसिद्ध पांच दंडक, तीन स्तुति व प्रणिधान पाठ करके होते हैं। चौथी थोय अर्वाचीन है, इसलिए ग्रहण नहीं की है । तो क्या हुआ? यह उत्कृष्टी चैत्यवंदना होती है। (३) यह व्याख्यान कोई एक 'तिन्निवा' इस कल्पभाष्यकी गाथा को 'पणिहाणं मुत्त सुत्तिए' इस वचन के आश्रयमें करता है । अन्य कोई ऐसा कहता है कि, पंचशक्रस्तव पाठ सहित सम्पूर्ण चैत्यवंदना होती है । विधिपूर्वक पांच अभिगम, तीन प्रदक्षिणा, पूजादि स्वरुप विधान करके। ‘खलु' शब्द वाक्यालंकार है । वा अवधारणार्थक है। इनका प्रयोग आगे बताया जाएगा। इस प्रकार चैत्यवंदना के तीन प्रकार हैं। उपरोक्त पंचाशक के पाठ का सार यह है कि, (१) कुछ व्यक्ति कल्पभाष्यकी गाथा के अनुसार मध्यम चैत्यवंदनाका स्वरुप, पंचदंडक तथा चार थोय कहने से मानते है । (२) कुछ व्यक्ति पंचदंडक, तीन थोय प्रणिधान पाठ सहित कहने से उत्कृष्ट चैत्यवंदन मानते हैं ।
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy