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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी 'अब प्रायः स्तनिक (अंचल) मतकी तरह सर्वलोक में कुमत के रुपमें प्रसिद्ध आगमिक मतका निरुपण किया जाता है । यह आगमिक मत वि.सं. १२५० में प्रारम्भ हुआ । (आगमिक मतकी उत्पत्ति किसने की यह अब बताते हैं।) शीलगण व देवभद्र नामक दो साधु कुमत पूर्णिमा गच्छसे निकलकर अंचलगच्छ में गए। इस गच्छमें अध्ययन करके उन्होंने आचार्यपद प्राप्त किया । इसके बाद अंचलगच्छ से निकलकर शत्रुंजय तीर्थ परिसर के निकट आए। यहां उन्हें बृहद्गण के मुनि अथवा सात-आठ गण से अलग हुए मुनि मिले। इन सभी साधुओं ने मिलकर शास्त्रविरोधी विचार किया। (इस बारे में टीका में खुलासा किया गया है ।) उन्होंने विचार किया कि, हम नवीन मतकी प्ररूपणा करे तो अच्छा । उस समय ऐसा विचार करके, श्रुतदेवताक्षेत्रदेवता आदि की ' सुयदेवया भगवई' इत्यादि स्तुतियों का निषेध करें ।' इस प्रकार उन्होंने नवीन मत प्रारम्भ किया । उन्होने जिस प्रकार दुष्ट विचार किया वैसा ही लोगों के समक्ष प्रचारित किया । इस विषयमें जो युक्तियां दी हैं, वे गाथा-५ में बताई गई हैं। १९६ नोट : उपरोक्त प्रवचन परीक्षा ग्रंथके पाठ से स्पष्ट फलित होता है कि, त्रिस्तुतिक मत का नाम ही आगमिक मत है और ग्रंथकार ने इस मत को शासनबाह्य बताया है। कुमत आगमिक मतकी उत्पति वि. सं. १२५० में हुई है। अर्थात् वह कुमत है। आगमिक मत (त्रिस्तुतिकमत) के सर्जनकर्ता साधुओंने दुष्ट विचार किया है, ऐसा शास्त्रकार ने स्पष्ट कहा है। इस प्रकार उनका मत शास्त्रविरोधी ही है। त्रिस्तुतिक मतकी उत्पत्ति करनेवाले साधु भूतकालमें भी कुमतों में ही थे, यह भी स्पष्ट देखने को मिलता है। प्रश्न : आगमिक मतकी उत्पत्ति करनेवाले साधुओं ने श्रुतदेवता
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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