SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी १९१ समणोवासए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता गमणागमणे पडिक्कमति र त्ता संखं समणोवासगंवंदति णमंसती" श्रीधर्मघोषसूरिजी कृत संघाचार भाष्यमें भी कहा गया है कि, पुक्खली श्रावक की कथा सुनकर 'इरियावही' प्रतिक्रमण करके ही सामायिक करना चाहिए। ॥ यदुक्तं ॥ श्रुत्वैवमल्पमपि पुष्कलिनानुचीर्णमीर्याप्रतिक्रमणतः किल धर्मकृत्यं सामायिकादि विदधीत ततः प्रभूतं तत्पूर्वमत्र च पदावनिमार्जनं त्रिः॥१॥ भावार्थ : पुक्खली श्रावक ने अल्प धर्मकार्य किया,साधर्मिक वात्सल्यमें आमंत्रण देने के लिए । यह अल्प धर्मकार्य भी 'इरियावही' प्रतिक्रमण करके शंख नामक श्रमणोपासक को कहा । इसलिए सामायिक विशेष करनी तो 'इरियावही' प्रतिक्रमणादि के बाद ही करनी चाहिए, तीन बार भूमि प्रमाणित करके करनी चाहिए। यह संघाचारवृत्ति का भावार्थ है। पू.आ.भ.श्री हरिभद्रसूरिजीकृत पंचाशक ग्रंथकी चूर्णिमें प्राभातिक (सुबह) सामायिक करने के अधिकार में प्रथम 'इरियावही' प्रतिक्रमण करके सामायिक का पाठ करने की विधि बताई गई है। यह पाठ इस प्रकार है। "तओ राइए चरमजामे उट्ठिउण इरियावहियं पडिक्कमिय पुव्वि च पोत्तिपहिय नमोक्कारपुव्वं सामाइयसुत्तं कड्डिय संदिसाविय सज्झायं कुणई" ___ भावार्थ : इसके बाद रात्रि के चौथे प्रहरमें उठकर 'इरियावही' प्रतिक्रमण करने के पश्चात् प्रथम मुहपत्ति पडिलेहणा करके एक नवकार का जाप करें और इस प्रकार सामायिक दंडक का उच्चरण कराएं । तत्पश्चात् संदिसाविय कहकर बेसणा संदीसामि बेसणा ठाएमि कहकर स्वाध्याय करें।
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy