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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी का उच्चारण करने को कहा गया है ? उत्तर : श्री तपागच्छीय गणिवर्य श्रीरुपविजयजी म. स्वरचित प्रश्नोत्तर में इस प्रकार लिखते हैं.... तथा च तत्पाठः ॥ जैनागमवचः श्रुत्वा नत्वा सद्गुरुपत्कजं इर्यापथिकचर्चारुं वक्ष्ये सन्मार्गदीपिका ॥ १ ॥ १८७ -जो आत्मार्थी जीव हो, उसे पंचांगी के अनुसार सामायिकादि क्रिया करनी चाहिए। इस पंचांगी के नाम हैं, (१) सूत्र, (२) निर्युक्ति, (३) भाष्य, (४) चूर्णि तथा (५) वृत्ति । इसके अलावा सुविहित आचार्यकृत ग्रंथ के अनुसार जो भव्य जीव क्रिया करें, वे जिनमार्ग के आराधक होते हैं। वर्तमान में कलिकालके दूषण से अपने अपने गच्छ के कदाग्रहो को लेकर, सूत्र का लोप करके कदाग्रह करके श्रावक को विपरीत मार्ग पर चलाते हैं। उनसे कहते हैं कि, सामायिक दंडक का उच्चारण करके इरियावही प्रतिक्रमण करें, किन्तु सुविहित गच्छ की विधि सूत्र के अनुसार इर्यावही प्रतिक्रमण करके सम्पूर्ण प्रतिक्रमणादि, पौषध, सामायिक, सज्झायादि क्रिया करनी चाहिए, लेकिन इर्यावही प्रतिक्रमण के बिना प्रतिक्रमणादि सामायिक करना आगम विरोधी है। इसके आधार के लिए श्री महानिशीथ सूत्रकी साक्षी लिखी है। ॥ तथाहि ॥ से भयवं जहुत्तविण उवहाणेण पंचमंगलं महासुअक्खं धमहिज्झित्ताणं पुव्वाणुपुव्वीए पच्छाणुपुव्वीए अणाणुपुव्वीए सरवंजणमत्ता बिंदुपयाक्खरविसुद्धथिरपरिचियं काउण महतापबंधेणं सुत्तत्थं च विण्णाय तओणं किं महिज्जेज्जा गोयमा इरियावहियं से भयवं केणंअठ्ठेण एवंवुच्चइ जयाणं पंचमंगलं महासुअक्खं धमहिज्जित्ताणं पुणो इरियावहिअं अहीए गोयमा जे एस आयागमणागमणाइ परिणइ अणेगजीवपाणभूअसत्ताणं अणोवउत्तपत्ते संघट्टण अवद्दावणकिलामणं काउणं अणालोइअ अपडिक्कंते
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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