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________________ १७२ त्रिस्ततिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी । यह अपि शब्द का अर्थ है । क्योंकि, पूर्वोक्त कायोत्सर्ग करना, यह कथन श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामी ने कहा है। अब वही समझाते हुए कहते हैं कि, 'चाउम्मासि।' इत्यादि गाथा १००२की व्याख्या। चातुर्मासी में, संवत्सरी में क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करना और पाक्षिक में भवनदेवता का कायोत्सर्ग करना। कोई एक आचार्य चातुर्मासीमें भी भवनदेवता का कायोत्सर्ग करने को कहता है। इति गाथार्थः॥ पूर्वपक्ष :- चातुर्मासी आदि में क्षेत्रदेवतादि का कायोत्सर्ग करने को श्री भद्रबाहुस्वामीजीने कहा है, तो फिर संप्रतिकालमें वर्तमानकालमें प्रतिदिन कायोत्सर्ग क्यों किया जाता है? (इस प्रश्नका उत्तर ग्रंथकारश्रीजी ही देते हैं।) उत्तरपक्ष: 'संपइ।' इत्यादि गाथा १००३ की व्याख्या। वर्तमानकालमें नित्य प्रतिदिन जिस देवतादि का कायोत्सर्ग किया जाता है। इसका कारण यह है कि, वर्तमानकालमें उन देवताओं का सांनिध्याभाव होने से अर्थात् पूर्वकालमें यदा-कदा एक बार कायोत्सर्ग करने से वे देव शासनकी प्रभावना के अवसर पर उपद्रव का नाश करते थे। जबकि वर्तमानकालमें कालदोष से यदा-कदा एक बार कायोत्सर्ग करने से वे देव सांन्निध्य नहीं करते । इसलिए उन्हें प्रतिदिन कायोत्सर्ग करके जागृत करने पर वे सान्निध्य करते हैं । इसलिए नित्य प्रतिदिन कायोत्सर्ग किया जाता है। ते ते कायोत्सर्ग करने से विशिष्ट अतिशयवान् वैयावृत्यकरादि जो देव हैं वे जागृत होते हैं। मात्र वैयावृत्त्य करनेवाले प्रसिद्ध देवताका ही कायोत्सर्ग नहीं किया जाता है। बल्कि 'शांतिकराणं०' इत्यादिक देवताओंका भी कायोत्सर्ग ग्रहण करें तथा प्रभूतकाल से अर्थात् लंबे समय से पूर्वधरों के काल से पूर्वोक्त देवताओं का
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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