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________________ १६९ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी हरिभद्रसूरिजी आदि तथा आगे बढकर पूर्वधर महर्षियों ने आचरण किया है, यह सिद्ध होता है और इसलिए हमारे लिए भी आचरणीय है।जो उसकी उपेक्षा करेगा, वह सुविहित परम्परा का लोपक बनेगा । सुविहित परम्परा भी मोक्षमार्ग है और इसलिए अंत में मोक्षमार्ग कालोपक बनेगा। प्रश्न : शासनदेवता का कायोत्सर्ग किस लिए करना है ? शासनदेवता का कायोत्सर्ग साधु-श्रावक से किया जा सकता है या नहीं ? श्रुतदेवता-क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग प्रतिदिन क्यों करना है ? पू.भद्रबाहुस्वामीजीने तो चातुर्मासी आदि में क्षेत्रदेवतादि कायोत्सर्ग करने को कहा है, तो फिर वर्तमानमें प्रतिदिन क्यों किया जाता है? ऐसा करने से क्या लाभ होता है? । उत्तर : इन सभी प्रश्नों का उत्तर 'जीवानुशासन' ग्रंथमें मिलता है। 'जीवानुशासन' ग्रंथके कर्ता सिद्धराज जयसिंह की राजसभामें कुमुदचंद्र दिगबंराचार्य को वाद में जीतनेवाले, ३३ हजार मिथ्यादृष्टियों के घरों को प्रतिबोधित करनेवाले, ८४००० श्लोक प्रमाण स्याद्वाद रत्नाकर ग्रंथ के रचयिता सुविहित शिरोमणि सुविहित चक्र चूड़ामणि श्रीदेवसूरिजी महाराजा हैं। इस ग्रंथ की टीका उत्तराध्ययन सूत्रके वृत्तिकार श्रीनेमिचंद्रसूरिजी ने रची है। इस 'जीवानुशासन' ग्रंथका पाठ निम्नानुसार है, तह बंभ संति माइण, केइ वारिति पूयणाईयं । तत्त जउ सिरिहरिभद्रसूरिणोणुमयमुत्तं च ॥९०१॥ व्याख्या ॥तथेति वादांतभणनार्थो ब्रह्मशांत्यादीनां मकारः पूर्ववत् आदिशब्दादंबिकादिग्रहः केऽप्येके वारयंति पूजनादिकमादिग्रहणाच्छेषतदौचित्यादिग्रहः तत्पूजादिनिषेधकरणं नेति निषेधे यतो यस्मात् श्रीहरिभद्र सूरेः सिद्धांतादिवृत्तिकर्तृरनुमतमभीष्टं तत्पूजादिविधानं उक्तं च भणितंच पंचाशके इतिगाथार्थः॥तदेवाह॥ साहमिया य एए महड्डिया सम्मदिट्ठिणो जेण ॥ एतोच्चिय उच्चियं खलु, एएइसिं इत्थ पूयाई ॥
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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