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________________ १६४ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी हो ऐसी तपस्या को मैं अंगीकार करूं । पहले छह मासी तप करने की तो मुझमें शक्ति नहीं । (२३) गाइइगुणतीसूणयंपि न सहो न पंचमासमवि । एवं चउतिदुमासं, न समत्थो एगमासंपि ॥ २४ ॥ -छह मासी में एक दिन कम, दो दिन कम, इस प्रकार २९ दिन कम करें, तो भी इतनी तपस्या करने की मुझमें शक्ति नहीं । तथा पंचमासी, चारमासी, त्रिमासी, दो मासी व एक मासखमण भी करने की मुझमें शक्ति नहीं । (२४) जातंपि तेरसूणं, चउतीस माओ दुहाणीए । जा चउथंतो आयंबिलाइजापोरिसि नमो वा ॥२५॥ - मासखमण में तेरह दिन कम करें तब तक तथा सोलह उपवास से लेकर एक एक उपवास कम करते हुए अंतत: चौथभक्त (एक उपवास) तक तपस्या करने की भी मुझमें शक्ति नहीं। इस तरह आयंबिल आदि, पोरिसी व नवकारशी तक चिंतन करें। (२५) जं सक्कड़ तं हिअए, धरेत्तु पारेतु पेहए पोतिं । दाउं वंदणमसढो, तं चिअ पच्चक्खए विहिणा ॥२६॥ - ऊपर कहीं गई तपस्या में जो तपस्या करने की शक्ति हो वह हृदयमें निर्धारित करें और कायोत्सर्ग पारकर मुहपत्ति पडिलेहणा करें। फिर सरल भाव से वांदणा देकर जो तपस्या मन में निर्धारित की हो उसका यथाविधि पच्चक्खाण लें । (२६) इच्छमो अणुसट्ठिति भणिअ उवविसिअ पढइ तिण्णि थुई । मिउसद्देणं सक्कत्थयाइ तो चेइए वंदे ॥२७॥ -फिर 'इच्छामो अणुसट्ठि' कहकर नीचे बैठकर धीमे स्वर से (विशाल लोचन का) तीन थोय का पाठ करें। इसके बाद नमुत्थुणं आदि (चार थोयसे) चैत्यवंदन करें। (२७)
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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