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________________ त्रिस्ततिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी १५५ श्रीमानविजयजी कृत धर्मसंग्रह ग्रंथ में देवसि प्रतिक्रमण की विधि दर्शाने के लिए रखी हैं । जो निम्नानुसार हैं। इनमें प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में चार थोय से चैत्यवंदना करने की विधि बताई गई है। पूर्वाचार्य प्रणीताः गाथः। ___पंचविहायार विसुद्धि-हेउमिह साहु सावगो वावि । पडिक्कमणं सह गुरुणा, गुरुविरहे कुणइ इक्को वि ॥१॥ वंदित्तु चेइयाई, दाउं चउराइ ए खमासमणे । भूनिहिअ सिरोसयला-इआरे मिच्छा दुक्कडं देइ ॥२॥ सामाइय पुव्व मिच्छामि ठाउं काउस्सग्गमिच्चाई। सुत्तं भणिअ पलंबिअ, भुअ कुप्परधरिय पहिरणओ ॥३॥ घोडगमाई अ दोसेहिं विरहिअंतो करइ उस्सग्गं । नाहिअहोज्जाणुद्धं चउरंगुल ठविअ कडिपट्टो ॥४॥ तत्थय धरेइ हिअए-ज्जहक्कम दिणकएअ अईआरे । पारिउ णमोक्कारेण पढइ चउवीस थयदंडं ॥५॥ संडासगे पमज्जिअ, उवविसिअ अलग्ग विअय बाहुज्झुओ। मुहणं तगं च कायं, पेहेए पंचवीस इह ॥६॥ उट्ठिअठिओ सविणयं, विहिणा गुरुणो करेइ किइकम्मं । बत्तीसदोसरहिअं पणवीसावस्सगविसुद्धं ॥७॥ अह सम्ममवणयंगो करजुग विहि धरिअ पुत्ति रयहरणो । परिचिंतिअ अइआरे जहक्कम्मं गुरु पुरोविअडे ॥८॥ अह उवविसत्तु सुत्तं, सामाइअ माइअ पढिअ पयओ। अब्भुट्टिओम्हि इच्चाइ, पढइ दुहओ ठिओ विहिणा ॥९॥ ___ दाउण वंदणं तो, पणगाइ सुज्जइ सुखामए तिन्नि । किइ कम्मं किरि आयरिअ, माइ गाहातिगं पढइ ॥१०॥ इअ सामाइअ उस्सग्ग, सुत्त मुच्चरिअ काउस्सग्ग ठिओ। चिंतइ उज्जोअदुगं चरित्त अइआर सुद्धिकए ॥११॥
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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