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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी १४९ प्रवचन सारोद्धार में चैत्यवंदना द्वारमें गाथा नं.९०में साधु भगवंतो के सात प्रकारके चैत्यवंदन बताए गए है तथा गाथा नं.९१में श्रावक के लिए भी कहा गया है कि, पडिक्कमणे चेइहरे, भोयणं समयंमि तह य संवरणे। पडिक्कमण सुयण पडिबोहकालियं सत्तहा जइणो ॥१०॥ पडिक्कमणो गिहिणो विहु, सत्तविह पंचहा उ इयरस्स। होइ जहणणेण पुणो, तीसुवि संजासु इय तिविहं ॥११॥ गाथार्थ : (दिन-रातके दौरान) साधु के लिए, (१) सुबह प्रतिक्रमण के अंतमें (विशाललोचनका), (२) जिनालयमें, (३) भोजन के समय (पच्चक्खाणके समयका), (४) भोजन करने के बाद (पच्चक्खाण के लिए,) (५) शाम को प्रतिक्रमण के प्रारम्भमें, (६) संथारा पोरिसी कराते समय तथा (७) सुबह उठकर, इस प्रकार सात बार चैत्यवंदन होते हैं। (९०) दो टाइम प्रतिक्रमण करनेवाले श्रावक को साधुकी भांति सात बार , जो श्रावक प्रतिक्रमण न करें उनके लिए पांच बार तथा जघन्य से तीन संध्या के समय करने से तीन बार चैत्यवंदना होती है। (९१) । __ अत्र वृत्तिः ॥ साधूनां सप्तवारान् अहोरात्रमध्ये भवति चैत्यवंदनं गृहिणः श्रावकस्य पुनश्चैत्यवंदनं प्राकृतत्वाल्लुप्तप्रथमैकवचनान्तमेतत् । तिस्रः पंच सप्तवारा इति । तत्र साधूनामहोरात्रमध्ये कथं तत्सप्तवारा भवंतीत्याह पडिक्कमणेत्यादि । प्राभातिक प्रतिक्रमणपर्यंते ततश्चैत्यगृहे तदनु भोजनसमये तथाचेति समुच्चये भोजनानंतरं च संवरणे संवरणनिमित्तं प्रत्याख्यानं हि पूर्वमेव चैत्यवंदने कृते विधीयते तथा संध्यायां प्रतिक्रमणप्रारंभे तथा स्वापसमये तथा निद्रामोचनरुप प्रतिबोधकालिकं च सप्तधा चैत्यवंदनं भवति यतेर्जातिनिर्देशादेकवचनं यतीनाममित्यर्थः। गृहिणः कथं सप्तपंचतिस्रो वारांश्चैत्यवंदनमित्याह पडिक्कमउ
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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