SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी १४७ वस्तुएं देवता से अधिष्ठित होती हैं और सर्वज्ञ भाषित सूत्र सर्व लक्षणों से युक्त है । इसलिए अधिष्ठाता देवता है।' (और वही श्रुतदेवी हैं।) श्रुतकी अधिष्ठात्री श्रुतदेवी होने के कारण 'श्रुतदेवता' पद से श्रुतदेवी ग्रहण किया जा सकता है। टीकाकारश्रीने यह भी खुलासा किया है कि, जैसे श्रुतभक्ति कर्मक्षयके कारण स्वरुप प्रसिद्ध है, वैसे ही श्रुताधिष्ठात्री-श्रुतदेवी विषयक शुभ प्रणिधान भी स्मरणकर्ताके कर्मों का क्षय करनेवाला कारण है। 'श्रुतदेवी नहीं है, हों तो भी अकिंचित्कर हैं।' इत्यादि बोलना श्रुतदेवीकी आशातना है। इस प्रकार पाक्षिक सूत्रकी टीका के पाठ से फलित होता है कि, श्रुतदेवी का स्मरण करने में कोई दोष नहीं। 'आवश्यकचूर्णिमें प्रतिक्रमण की विधिके साथ श्रुतदेवता-क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग एवं स्तुति नहीं कही गई है ।' ऐसा जो मुनि श्रीजयानंदविजयजीने कहा है, वह असत्य है। क्योंकि, आवश्यक चूर्णिमें चातुर्मासी में तथा सांवत्सरिकमें क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करने को कहा गया है और वर्तमान में प्रतिदिन क्यों करें, इस बारेमें जीवानुशासनमें कहा गया है। ये दोनों पाठ पूर्वमें दिए जा चुके हैं। आगम में (आवश्यक चूर्णिमें) श्रुतदेवता की विनयभक्ति करने को कहा गया है। ___ 'श्रुतदेवी दृष्टिदेने मात्र से भगवंतकी आज्ञा में रत पुरुषों को सुर-नर की ऋद्धि प्रदान करती हैं।' यह कथन आराधना पताका ग्रंथमें देखने को मिलता है।
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy