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________________ १४० त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी उपांगोंको भी अनार्ष मानने की आपत्ति आएगी । ( परन्तु ऐसा तो नहीं है । आवश्यकादि के अलावा अनंग प्रविष्ट श्रुत को श्रुतस्थवीर (आर्ष) प्रणीत ही मानते हैं और उपांगों को भी आर्षप्रणीत ही मानते हैं ।) इसलिए श्रुतस्थवीर द्वारा विरचित श्रावकों का अलग ५० गाथात्मक श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र (वंदित्तासूत्र) ही है। (और वह प्रमाणभूत भी है।) पू. आ. भ. श्री रत्नशेखरसूरिकृत श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र ( वंदित्तासूत्र ) की 'अर्थदीपिका' टीका में ५० वीं गाथा की टीका में भी उपरोक्त सभी स्पष्टताएं हैं। यह पाठ निम्नानुसार है। "अत्राह परः- - इदं प्रतिक्रमणसूत्रं केन कृतम् ?, उच्यते, यथाऽपरप्रतिक्रमणसूत्राणि श्रुतस्थविरकृतानि तथैतदपि, यदुक्तमावश्यकबृहद्वृत्तौ -'अक्खरसन्नी' तिगाथाव्याख्याने - अङ्गप्रविष्टं गणधरकृतमा - चाराङ्गादि, अनड्गप्रविष्टं तु स्थविरकृतमावश्यकादीनि अथ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रस्य यद्यार्षत्वं तदा किं न तस्य नियुक्तिभाष्यादि ? इति चेत् तर्द्धावश्यकदशवैकालिकादिदशशास्त्रव्यतिरेकेण शेषाणां निर्युक्त्यभावादौपपातिकाद्युपाड्गानां चूर्णेरप्यभावाद् अनार्षत्वप्रसङ्गस्तस्मान्न किञ्चिदेतत् । श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रस्य च विक्रम १९८३ वर्षे श्रीविजयसिंहसूरि श्रीजिनदेवसूरिकृते चूर्णिभाष्ये अपि स्तः वृत्तयश्च बह्वयः, अतः श्रुतस्थविरकृतत्वेन सर्वातीचारविशोधकत्वेन श्रावकैरेतदुपादेयमेव, साधुभिः स्वप्रतिक्रमणसूत्रमिव, एवं सति ये स्वकदाग्रहमात्राभिनिविष्टदृष्टयः पाश्चात्येन केनचित् कृतं सर्वथा चानुपादेयमिति ब्रुवते न विद्मस्तेषां का गतिः ? सर्वज्ञप्रणीतप्राचीनस्थविराचरितसम्यग्मार्गस्योपमर्दनात् ।” भावार्थ : शंका : इस श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र ( वंदित्तासूत्र ) के रचयिता कौन है ?
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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