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________________ १३० त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी करने के लिए क्षेत्रदेवता एवं तृतीय व्रतकी रक्षा के लिए क्षेत्रदेवता के कायोत्सर्ग का विधान है। __ (३) वंदित्तासूत्र ५० गाथात्मक ही है। ४७वीं गाथा में सम्यग्दृष्टि देवताओं से बोधि-समाधि मांगी गई है। देवता ये देने के लिए समर्थ भी हैं। (४) पाक्षिक सूत्र के अंतमें श्रुतदेवताको 'सुयदेवया भगवई' स्तुति के माध्यम से विनती की गई है। यहां श्रुतदेवताका अर्थ श्रुत की अधिष्ठात्री देवीश्रुतदेवी किया गया है। उनके समक्ष कर्मोंके नाश की प्रार्थना की गई है। __ (५) पाक्षिक सूत्रकी व्याख्यामें 'देवसक्खियं' पद की व्याख्यामें कहा गया है कि, विरति का स्वीकार पांच की साक्षी में करना चाहिए। इतना ही नहीं, कोई भी अभिग्रह पांच की साक्षी से करना चाहिए। श्री अरिहंत परमात्मा, श्री सिद्ध परमात्मा, पू.साधु भगवंत, देव तथा आत्मा, इन पांच की साक्षी बताई गई है। ये देववंदन के उपचार से (अर्थात् देववंदन में उनका कायोत्सर्ग करने व स्तुति बोलने से) समीप आते हैं। (और स्वशक्ति से सहायता भी करते हैं) (अभिधान राजेन्द्रकोष पृष्ठ-२८८) ___(६) अभिधान राजेन्द्रकोषमें चेइयवंदण' विभागमें पृ. १३२७ पर जिनालयमें करनेका देववंदन में चार थोय करनी कही है।और चारों थोय का हेतु भी बताया है। उसमें चौथी थोय सम्यग्दृष्टि देव की बोली जाती है। ........................................................................................... प्रश्न : अभिधान राजेन्द्रकोषमें वंदित्तासूत्र को ५० गाथात्मक (गाथा प्रमाण) कहा गया है और ४७वीं गाथा के उत्तरार्ध में सम्मदिट्ठी देवा' पद ही कहा गया है। फिर भी त्रिस्तुतिक मत के लेखक वंदित्तासूत्र के गाथा प्रमाण के लिए और ४७वीं गाथा के उत्तरार्धमें निहित सम्मदिट्ठी देवा' पद के लिए अलग अलग अलग अभिप्राय रखते हैं। यह बराबर है? उत्तर : अभिधान राजेन्द्रकोषमें स्पष्ट लिखा होने के बावजूद त्रिस्तुतिक मत के लेखक इससे अलग अभिप्राय रखते हैं यह शास्त्रविरोधी है।
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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