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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी " कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचंद्रसूरिजी महोपाध्याय श्रीमानविजयजी महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी आदि अनेक प्रामाणिक महापुरुषोंने अशठभाव से आराधी है। अपने ग्रंथोमें उसकी विहितता एवं उपयोगिता भी बताई है। जबकि त्रिस्तुतिक मत के लिए इस प्रकार की स्थिति नहीं है । 1 ११७ (३) चतुर्थस्तुतिकी आचरणा सुविहित महापुरुषों द्वारा आचरित है। साथ ही मूलगुण- उत्तरगुणों की विघात करनेवाली नहीं है और शास्त्रवचनों से विरुद्ध नहीं है। पंचांगी का एक भी वचन चतुर्थ स्तुतिका विरोध नहीं करता । प्रत्युत चतुर्थ स्तुति का समर्थन करता है। जबकि त्रिस्तुतिक मत को किसी भी शास्त्रका समर्थन नहीं । महापुरुषोंकी आचरणा से विरुद्ध है। इसलिए मूल- उत्तरगुणों का घातक है । इसलिए यह मान्यता निरवद्य नहीं है 1 (४) संविग्नगीतार्थादिगुणवान् प्रामाणिक महापुरुषों द्वारा अशठभाव से प्रवर्तमान निरवद्य चतुर्थ स्तुति की मान्यता का तत्कालीन तथाविध गीतार्थों ने निषेध नहीं किया है। अर्थात् चतुर्थ स्तुति की आचरणा का किसी संविग्नादि गुणवान् गीतार्थों ने निषेध नहीं किया है। जबकि त्रिस्तुतिक मतका संविग्नादि गुणवान् गीतार्थोंने विरोध किया है । (५) चतुर्थ स्तुति की आचरणा का जैसे तथाविध गीतार्थोंने निषेध नहीं किया, बल्कि समर्थन किया है, वैसे ही बहुश्रुतों ने भी चतुर्थ स्तुतिके मत का समर्थन किया है, विरोध नहीं किया । जबकि त्रिस्तुतिक मत का अनेक गीतार्थों एवं बहुश्रुतों ने जगहजगह विरोध किया है। (६) देव-देवी के कायोत्सर्ग एवं उनकी स्तुति की आचरणा का मूल सातिशायी पुरुष हैं। जबकि तीन थोय की आचरणा का मूल सातिशायी पुरुष नहीं है ।
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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