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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी १०१ करके कायोत्सर्ग करते हैं, उनका कर्मक्षय होता है । (कर्मक्षय होता देखने को मिलता है।) ___ठाणांगसूत्रमें कहा गया है कि, श्री अरिहंत परमात्मा, श्री अरिहंत द्वारा प्ररुपित धर्म, आचार्य, श्रमणप्रधान संघ तथा देवता का वर्णवाद करता है, वह सुलभबोधित्व को प्राप्त करानेवाले कर्म का उपार्जन करता है और वो पांच का अवर्णवाद करता है, वह दुर्लभबोधित्व को प्राप्त करानेवाला कर्म उपार्जित करता है। ठाणांगसूत्रमें देवताका अवर्णवाद निम्नानुसार बताया गया है। "तथा विपक्वं सुपरिनिष्ठितं प्रकर्षपर्यंतमुपगतमित्यर्थः । तपश्च ब्रह्मचर्यं तद्हेतुकं देवायुष्कादिकं कर्म येषां ते तथा तेषामवर्णं वदन् न सन्त्येव देवाः कदाचनाप्यनुपलभ्यमानत्वात् किं वा तैर्विटैरिव कामासक्तमनोभिरविरतैस्तथा निर्मिमेषैरचेष्टैश्च म्रियमाणैरिव प्रवचनकार्यानुपयोगिभिश्चैत्यादिकं इहोत्तरं संति देवास्तत्कृतानुग्रहोपघातादिदर्शनात् कामासक्ताश्च मोहशाताकर्मोदयादित्यादि।अभिहितं च एत्थ पसिद्धीमोहणीयसायवेयणियकम्मउदयाउ। कामासत्ताविरई, कम्मोदयउवियनतेसिं ॥१॥ अणमिसदेवसहावो निचेठाणुत्तराइकयकिच्च । कालाणुभावतित्थुण्णइंपि अन्नत्थ कुव्वंतिति ॥२॥ देववर्णवादो यथा। देवाण अहो सीलं विसयविसमोहिया वि जिणभवणे। ___ अत्थरसाहिपि समं, हासाई जेण न करंतिति ॥१॥ भावार्थ : तथा (विपक्वं०) अतिशय करके पर्यंतता को प्राप्त किया है तप एवं ब्रह्मचर्य भवांतरमें जिनके अथवा (विपक्वं०) उदय प्राप्त किया है तप एवं ब्रह्मचर्यरुपी उद्देश्य से देवताके आयुष्य कर्म जिनके, उन देवताओं का अवर्णवाद बोले। जैसे कि, "देवता कभी भी देखने में नहीं आते। यदि हो तो भी
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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