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________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य गुणों से युक्त आपकों मन्त्र साधना के कार्य में प्रवृत्त कराने का आदेश दिया। अब तुम जाकर विद्याधरेन्द्रों के चक्रवर्तित्व को स्वीकार करो। यह कहकर देवी अन्तर्ध्यान हो गई। देवी के अन्तर्ध्यान होते ही दिव्य-भेरी बज उठी। उसे सुनकर सभी दिशाओं से विद्याधरेन्द्र आ गए और मुझे विमान में बैठा कर विजयार्ध पर्वत के शिखर पर ले गए और मेरा राज्याभिषेक कर दिया। उसी समय प्रधान द्वारपाल गन्धर्वक को लेकर आया। उसने मुझे विद्याधर सम्राट के पद पर देखकर आश्चर्यचकित होकर मुझे प्रणाम किया। मैंने उससे तिलकमञ्जरी के विषय में पूछा तो वह बोला-हे देव! मैंने आपके द्वारा भिजवाए हुए आभूषण दोनों देवियों को दे दिये थे। दिव्य अंगुलीयक को धारण करते ही मलयसुन्दरी को मानों अपने पूर्वजन्म की याद आ गई और उनकी आँखों से अश्रुपात होने लगा। हार को धारण करने पर तिलकमञ्जरी की मुख कान्ति भी मलिन हो गई और गद्गद स्वर में मुझसे पूछा कि कुमार को यह हार कैसे प्राप्त हुआ। मैंने हार प्राप्ति का वृत्तान्त सुनाया तो वह मूर्छित हो गई। अगले दिन तिलकमञ्जरी मलयसुन्दरी को साथ लेकर तीर्थयात्रा के व्यपदेश से घर से निकल पड़ी। भिन्न-भिन्न स्थानों के आयतनों में जाकर पूजादि करते हुए, घूमते हुए उन्होंने एक सिद्धायतन में एक महर्षि को देखा। महर्षि के दर्शनों से शान्तचित्त होकर, उन्हें नमस्कार करके वे उनके पास बैठ गई। सर्वद्रष्टा महर्षि ने उनकी मनः स्थिति को जान लिया और उनकी शंकाओं का समाधान करने के लिए कहना प्रारम्भ किया - सौधर्म नामक लोक में ज्वलनप्रभ नामक वैमानिक रहता था। बहुत वर्षों बाद अपनी दिव्य आयु को कम जानकर, अपने अगले जन्म को सुधारने व बोधि लाभ के लिए वह स्वर्ग से निकल गया। उसके जाने पर उसके विरह से विकल उसकी प्रिय पत्नी प्रियङ्गसुन्दरी उसे ढूढ़ते हुए जम्बु द्वीप गई। वहाँ पर उसे ज्ञात हुआ कि उसके पति का मित्र सुमाली भी अपनी प्रिय पत्नी प्रियंवदा को छोड़कर कहीं चला गया है। तब प्रियङ्गसुन्दरी अपनी सखी प्रियंवदा को साथ लेकर मेरूपर्वत के पुष्करावती नाम तीर्थ गई। वहाँ प्रियङ्गसुन्दरी ने जयन्तस्वामी नामक महात्मा से पूछा कि - हे भगवन्! हमारा अपने पतियों से मिलन कब होगा?उन्होने बताया कि एकशृंग नामक पर्वत पर तुम्हारा अपने प्रिय से मिलन होगा और प्रियंवदा का सुमाली से मिलन रत्नकूट पर्वत पर होगा । आपको मिलाने में दिव्य आभूषण निमित्त बनेंगे। यह सुनकर प्रियङ्गसुन्दरी एकशृंग पर्वत और प्रियंवदा रत्नकूट पर्वत
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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