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________________ 48 तिलकमञ्जरी का कथासार दर्शन किए। भक्ति से परिपूर्ण होकर उसने वहाँ सिर झुकाकर प्रणाम करके पूजा की। वहीं पर हरिवाहन के विषय में चिन्तन करते हुए अनायास ही 'हरिवाहन' शब्दोच्चारण सहित श्लोक की ध्वनि उसके कर्णविवर में पड़ी। उस ध्वनि के उद्गम स्थल का अन्वेषण करते हुए उसने द्विपदिका' का उच्चारण करते हुए गन्धर्वक को देखा और अत्यधिक सुख को प्राप्त किया । गन्धर्वक ने भी समरकेतु को पहचानकर तत्क्षण ही नमस्कार किया और बताया कि हरिवाहन अब विद्याधरेन्द्रों के चक्रवर्ती सम्राट हो गए हैं। आई मैं आपको आपके मित्र हरिवाहन के पास ले चलता हूँ। समरकेतु ने गन्धर्वक के साथ उत्तर दिशा की ओर चलते हुए एक कदलीगृह को देखा। वहाँ समरकेतु ने अत्यन्त सुन्दर विद्याधरेन्द्र कन्या तिलकमञ्जरी के साथ पद्मराग मणिमय शिला पर बैठे हुए हरिवाहन को देखा। गन्धर्वक ने शीघ्रता से हरिवाहन के पास जाकर समरकेतु के आने की सूचना दी। यह सुनकर हर्षातिरेक से 'कहाँ है कहाँ है' कहते हुए हरिवाहन अपने आसन से खड़े हो गए। उसी समय उन्होंने दरवाजे से समरकेतु को आते हुए को आते हुए देखा और आगे बढ़कर प्रीतिपूर्वक उसका आलिंगन किया तथा उसे अपने पास ही बिठा लिया। तत्पश्चात् समरकेतु का परिचय देते हुए तिलकमञ्जरी से कहा देवि ! यह सिंहलद्वीप के अधिपति चन्द्रकेतु का आत्मज और समस्त वीरों में अग्रणी समरकेतु है, जिसे तुम्हारी भगिनी मलयसुन्दरी ने पति रूप में अङ्गीकृत किया है। यह सुनकर तिलकमञ्जरी बहुत ही प्रेम व आदर से उसे देखने लगी । उसी समय किसी गायक के द्वारा उच्च स्वर में गाए जा रहे आर्या को सुनकर हरिवाहन ने हंसकर तिलकमञ्जरी से कहा कि राजधानी में प्रवेश करने का समय आ गया है। इसी कारणवश प्रमुख मन्त्रियों द्वारा प्रेषित विराध नामक यह मन्त्री मुझे हंस के व्याज से यहाँ से प्रस्थान करने के लिए प्रेरित कर रहा है। अत: आप मुझे जाने की आज्ञा दें। यह कहकर हरिवाहन समरकेतु के साथ हस्तिनी पर 3. 4. 5. - शुष्क शिखरिणी कल्पशाखीव, निधिरधनग्राम इव कमलखण्ड इव मारवेऽध्वनिभवभीमारण्य इह वीक्षितोऽसि - ति. म., पृ. 218 आकल्पान्तमर्थिकल्पद्रुम चन्द्रमरीचिसमरूचिप्रचुरयशोंशुभरित विश्वंभर भरतान्वयशिरोमणे | जनवन्द्यानवद्यविद्याधर विद्याधरमनस्विनीमानसहरिणहरण हरिवाहन वह धीरोचितां धुरम् ॥ ति.म., पृ. 222 तव राजहंस हंसीदर्शनमुदितस्य विस्मृतो नूनम् । सरसिजवनप्रवेशः समयेऽपि विलम्बसे तेन ।। वही, पृ. 232
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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