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________________ 208 तिलकमञ्जरी में वक्रोक्ति पदार्थ को लोकोत्तर शोभातिशयता से युक्त कर वर्णन करता है, जिससे वह सामान्य वस्तु की अपेक्षा अत्यधिक रमणीयता व अलौकिकता को प्राप्त कर लेती है, वहां आहार्य वस्तु वक्रता होती है। धनपाल वस्तुओं के सहज सौन्दर्य का सजीव चित्रण करने में तो कुशल हैं ही, वे अपने काव्य कौशल से किसी भी पदार्थ को विशिष्ट व रमणीय बनाने में भी सिद्धहस्त हैं। तिलमञ्जरी के लिए धनपाल की काल्पनिक उपमाएँ द्रष्टव्य हैं ग्रहकवलनाभ्रष्टा लक्ष्मीः किमृक्षपतेरियं, मदनचकितापक्रान्ताऽब्धेरुतामृतदेवता। गिरिशनयनोदर्चिर्दग्धान्मनोभवपादपाद्, विदितमथवा जाता सुभ्रूरियं नवकन्दली। यह तिलकमञ्जरी राहुग्रह के ग्रसने से नीचे गिरी हुई चन्द्रमा की शोभा है, अथवा कामदेव से चकित होकर समुद्र से निकली अमृत की देवी है, अथवा यह सुभ्रू शिव के नेत्रों से उत्पन्न ज्वाला से भस्म कामदेवरूपी वृक्ष से उत्पन्न हुई नवकन्दली (नवाकर) है। यह धनपाल का काव्य-कौशल ही है, जिससे उसने तिलकमञ्जरी के लिए ऐसे उपमानों का प्रयोग किया है जिससे उसके सौन्दर्य की रमणीय अभिव्यञ्जना हो रही है। उद्यज्जाड्य इव प्रगेतनमरुत्संसर्गतश्चन्द्रमाः पादानेष दिगनततल्पनलतः शङ्कोच्चयत्यायतान्। अन्तर्विस्फुरितोरुतारकतिमिस्तोमं नभः पल्वला - द्ध्वान्तानायमयं च धीवर इवानूरुः करैः कर्षति॥" यहाँ प्रातः कालिक सूर्य व चन्द्रमा की सुषमा का वर्णन किया गया है। चन्द्रमा प्रातः कालिक पवन के संसर्ग से उत्पन्न शैत्य के कारण दिशाओं के अग्रभाग रूपी शय्यातल में विस्तृत अपने किरण रूपी चरणों को सिकोड़ रहा है और यह प्रत्यक्षवर्ती सूर्य का सारथी धीवर के समान आकाश रूपी सरोवर के 80. 81. ति. म., पृ. 248 वही, पृ. 238
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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