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________________ 204 तिलकमञ्जरी में वक्रोक्ति कर रहा है। यहाँ उत्तम पुरुष वाचक अस्मद् के स्थान पर 'अयं जनः' का प्रयोग हुआ है अत: पुरुष-वक्रता है। वस्तुवक्रता आचार्य कुन्तक वस्तुवक्रता का निरूपण करते हुए कहते हैं - "केवल अपने सर्वोत्कृष्ट स्वभाव की रमणीयता से युक्त रूप में, वस्तु का वक्र शब्द के द्वारा ही प्रतिपाद्य रूप में वर्णन उस वस्तु की वक्रता होती है। कुन्तक वस्तु-वक्रता के भेदों का वर्णन करते हुए कहते है कि कवि की स्वाभाविक एवं व्युत्पत्तिजन्य निपुणता से सुशोभित होने वाली एवं अपूर्व वर्णन के कारण लोकोत्तर विषय का निरूपण करने वाली कवि की सृष्टि वर्ण्यमान वस्तु की दूसरी वक्रता होती है। इस प्रकार कुन्तक ने वस्तु वक्रता के दो प्रमुख भेद किये हैं - सहजा और आहार्य।” सहजा वस्तु वक्रता : सहज का अर्थ है - स्वाभाविक। सहजावक्रता कवि की सहज प्रतिभा जन्य होती है। कवि अपनी कवित्व शक्ति से जब वस्तु के सहज सौन्दर्य का वर्णन कर सहृदय को आह्लादित करता है, वहाँ सहजा वस्तु-वक्रता होती है। कुन्तक के अनुसार जो वस्तुएँ प्रकृत्या रमणीय होती हैं उनका सजीव चित्रण सहृदय को अत्यधिक आनन्द प्रदान करता है। काव्य में अनेक ऐसे विषय अथवा वस्तुएं होती हैं, जो अपने सहज रूप में ही आनन्द का संचार करती हैं। नारी अङ्गों का सौन्दर्य, ऋतु संधि और प्रकृति की मनोरम छटा सहसा ही सहृदय को मुग्ध कर देती हैं। ___ धनपाल ने तिलकमञ्जरी में यथावसर नारी, ऋतु, प्रकृति आदि के सहज सौन्दर्य का सफलतापूर्वक उद्भावन किया है। वे नारी, प्रकृति आदि के सहज सौन्दर्य का अतिसुन्दर वर्णन करते है जिससे सहृदय उस सौन्दर्य का प्रत्यक्षीकरण कर लेता है - 73. उदारस्वपरिस्पन्दसुन्दरत्वेन वर्णनम्। वस्तुनो वक्रशब्दैकगोचरत्वेन वक्रता।। व. जी., 3/1 74. अपरा सहजाहार्यकविकौशलशालिनी।। निर्मितिर्नुतनोल्लेखलोकातिक्रान्तगोचरा।। व.जी, 3/2 75. सैषा सहजाहार्यभेदभिन्ना वर्णनीयस्य वस्तुनो द्विप्रकारा वक्रता। वही, 3/2 की वृत्ति 76. वही, 3/1 की वृत्ति
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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