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________________ ही सब सहेलियाँ हक्की-वक्की सी दौड़ी आयी और राजकुमारी के आस-पास “खमा, खमा" कहती हुई इकट्ठी हो गयी । उनमें से एक सहेली दौड़ी| हुई बागवान के पास आयी और उसे उसने दरबार में महाराजा को खबर देने दौड़ाया। राक्षसकुमारी मदालसा के सहवास से तिलोत्तमा के मन में धर्म की| वासना अधिक जागरित हो गयी थी। इसलिए सर्प के काटते ही उसने नवकार मंत्र | का उच्चारण करना आरंभ कर दिया, और धर्म की शरण लेने लगी। उसकी सहेलियाँ राजकुमारी का मुंह देख-देखकर अश्रुधारा बरसाती हुई रोने लगीं । राजा नरवर्मा यह अशुभ समाचार सुनते ही अपने मुख्य-मुख्य मनुष्यों के साथ बगीचे में दौड़े हुए आये । उस खिरनी वृक्ष के नीचे पहुँच कर उन्होंने बेसुधपड़ी हुई राजकुमारी को अपनी गोद में लेकर कहा - "बेटी तुझे क्या हो गया ? शासनपति तेरी रक्षा करें।" ऐसा कहकर वह उसे बुलाने की चेष्टा करने लगे परन्तु सर्प विष उसके सारे शरीर मे व्याप्त हो चुका था, इसलिए तिलोत्तमा कुछ भी नहीं बोल सकी । जब अपनी पुत्री के मुँह से कुछ भी उत्तर नहीं मिला, तब राजा अत्यंत शोकातुर हुआ और जोर जोर से डाढ़ें मार कर रोने लगा। यह समाचार बिजली की तरह मोटपल्ली नगरी में फैल गया । सुनते ही राजमंत्री, सामंत, और अधिकारी तथा नगर वासी वहाँ दौड़कर आ पहुँचे । सती मदालसा भी सखी स्नेह से रोती कलपती हुई राजमाता के साथ वहाँ आयी। इस खबर से सारे नगर में हाहाकार मच गया। राजमंत्री तथा नगर सेठ आदि ने आकर महाराजा को बहुत समझाया, परन्तु महाराजा का पुत्री प्रेम इतना प्रबल था कि राजा नरवर्मा अपने शोक को किसी भी तरह शान्त नहीं कर सका । अनन्तर मंत्रि आदि नगर जनों ने राजा को समझाकर, एक अच्छी पालकी मँगवाई और उसमें राजकुमारी के अचेत शरीर को रखकर दरबार में ले आये और वहाँ पर सर्प विष निवारण के लिए अनेक उपचार करने लगे। सर्प विष दूर करने की औषधियाँ जानने वाले वैद्यों को बुलाया गया, 50
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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