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________________ पहुँचता है उस बात को महात्मा - पुरुष खुशी से मान लेते हैं।" मिस्त्री की इस प्रार्थना पर वह तरुण उस मिस्त्री के घर पर रहने लगा, और अपनी शिल्पशास्त्र की विद्वता से वह उस मिस्त्री के लिए एक अच्छा सहायक बन गया । पाठक ! आपके हृदय में इस बात का रहस्य जानने की इच्छा बलवती हो उठी होगी । इसलिए यहाँ इसे स्पष्ट कर देना ठीक है । जो यह महल बन रहा है, वह महाराजा नरवर्मा का है। वह अपनी राजकुमारी तिलोत्तमा और मदालसा के रहने के लिए यह सुन्दर महल बनवा रहा है । महल की रचना में विपुल धन खर्च किया जायगा । यह तरुण पुरुष अपनी कथा का मुख्य नायक उत्तमकुमार है। पुण्य के प्रभाव से तथा आयुष्य एवम् कर्मबल से उत्तमकुमार समुद्र के भयङ्कर तूफान में से बचकर सकुशल यहां आ पहुँचा है । उसका यहाँ पर राजा के मिस्त्री से मिल-मिलाप हुआ । उत्तमकुमार ने वाराणसी नगरी की पाठशाला में विद्या तथा कला की अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी, इसीलिए उसकी शिल्प कला पर वह मिस्त्री इस प्रकार मुग्ध हो गया है। पापी कुबेरदत्त ने जब उत्तमकुमार को समुद्र में फेंक दिया, तब वह गहरे जल में जा गिरा।सब कलाओं में निपुण होने के कारण उस राजकुमार ने अगाधपानी में तैरना आरम्भ किया । जब राजकुमार महासागर में तैरता हुआ आगे बढ़ रहा था, तब एक मगर आया और वह राजकुमार को ज्यों-का-त्यों निगल गया । उत्तमकुमार को निगल कर वह मगर तैरता हुआ मोटपल्ली नगर के पास आ पहुंचा, जहाँ पर कुछ धीवरों ने जाल डालकर उसे पकड़ लिया । मत्स्य भोजी धीवर उस मगर को अपने घर ले आये, और उसको चीरने पर उसके पेट से उत्तमकुमार जीवित निकला । उत्तमकुमार की अनुपम तेजस्वी मूर्ति को देखकर धीवरों ने विचार किया कि “यह कोई महान् पुरुष है । इसलिए इसे अपने यहाँ ही रखना चाहिए।" यह सोचकर राजकुमार को उन धीवरों ने अपने घर पर रखा और शुद्ध हृदय से उसकी सेवा करने लगे। ___एक दिन उत्तमकुमार धीवरों के घर से निकलकर, मोटपल्ली नामक
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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