SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वाले महाशय भी आज तेरे चक्कर में पड़े हुए है।" यह सोचते हुए, राक्षस बाला ने पुनः अपने पति देव से हाथ जोड़कर कहा - "स्वामिन् ! आपके हृदय पर मेरे वचनों का कुछ भी असर नहीं होता, परन्तु इसका फल अच्छा नहीं होगा । कुबेरदत्त के हृदय पर कुटिलता का काला पर्दा गिरा हुआ है - यह निश्चय समजिए । उसकी बातें शुद्ध नहीं हैं । उसके मन, वचन, और शरीर में कपट की अपवित्र छाया प्रवेश कर गयी है । प्राणनाथ ! इस दासी के वचनों पर ध्यान दीजिए । इस कपटी व्यक्ति का भूलकर भी आपको विश्वास नहीं करना चाहिए ।" मदालसा के यह वचन सुनकर उत्तम कुमार ने समझाते हुए कहा - "हे शङ्कित हृदये ! ऐसी मलीन शंका मन में मत लाओ । | परोपकारी कुबेरदत्त सब तरह से पवित्र है । उसके हदय की पवित्रता का प्रतिबिम्ब मेरे हृदय में पड़ चुका है । इसलिए मुझे उस पर पूरा विश्वास है । | पूर्व कर्मों की प्रेरणा से उत्तमकुमार अपनी जिद्द पर अटल था । उसके हृदय का विश्वास कुबेरदत्त पर ज्यों का त्यों था । वह बार-बार कुबेरदत्त के पास जाता, और कुबेरदत्त उसके पास आता । इस तरह शुद्ध और अशुद्ध प्रेम के बीच परस्पर व्यवहार चलता था । परन्तु पतिभक्ति-परायणा मदालसा सदैव कुबेरदत्त की तरफ से शंकित हृदया रहती थी । उसकी यह शंका अन्त में सत्य हुई। कुटिल हृदयी कुबेरदत्त ने एक दिन रात के समय धोके से उत्तमकुमार को समुद्र में धक्का देही दिया। 36
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy