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________________ रह कर अपने जीवन को सफल बनाऊँ । यदि मैंने पूर्वजन्म में कोई पुण्य किये हो अथवा इस जन्म में मुझ से जो कुछ भी पवित्र कार्य बने हो तो उनके बदले में उत्तमकुमार के साथ मेरा शेष जीवन व्यतीत हो, ऐसी पवित्र भावनाएँ मैं निरन्तर अपने मन में करता रहता हूँ। इस प्रकार मधुर वचनों द्वारा कुबेरदत्त उत्तमकुमार की प्रशंसा कर लौट गया। वहाँ जाकर उसने अपने विश्वास पात्र सेवक सुखानन्द से कहा - "सुखानन्द ! तूं जाकर उत्तमकुमार से पूछना तो सही कि मैंने उसके प्रति अपने कैसे भाव प्रकट किये है ? उनको जान लेने पर तुझे विश्वास हो जायगा कि कुबेरदत्त कितने पवित्र विचारों का व्यक्ति है; एवं अपने उपकारी उत्तमकुमार के लिए उसके हृदय में कैसा आदर-मान है?" अपने सेठ के इन वचनों को सुनकर सुखानन्द के हृदय में पूर्ण विश्वास हो गया कि, सेठ कुबेरदत्त ने अभी तक कुबुद्धि नहीं त्यागी है । वह अपने कुविचारों को कपट भाव से छिपाने का प्रयत्न करता है । देखना चाहिए, आगे क्या होता है ? शासन देवता ! सेठ साहिब को सुबुद्धि प्रदान करो।" इधर जब कुबेरदत्त उत्तमकुमार से मीठी-मीठी बातें बनाकर चला गया तब मदालसा के हृदय में उसके प्रति शंका उत्पन्न हुई । उस चतुर बाला ने सोचा कि - "जहाँ शुद्ध प्रेम होता है वहाँ खुशामद की आवश्यकता नहीं होती। प्रेम के शुद्ध पाठ में खुशामद के अपवित्र वचन आ ही नहीं सकते । इसमें कुछ न कुछ दगा अवश्य है । सेठ कुबेरदत्त की बोली में प्रत्यक्ष दोष मालूम पड़ता है। उसकी मनोवृत्ति में अवश्य ही कुछ विकार पैदा हो गया है । इस बात की सूचना मुझे अपने भोले पति को अवश्य देनी चाहिए, वर्ना परिणाम ठीक न होगा।" यह सोचकर मदालसा ने अपने पतिदेव से कहा - "प्राणनाथ ! इस कुबेरदत्त सेठ के प्रति मेरे हृदय में शंका होती है । मुझे उसकी वाणी के माधुर्य में जहर मिला हुआ मालूम होता है । उसके हृदय पर पाप की गहरी छाया पड़ी हुई है। इसलिए आप उस पर भूलकर भी कभी विश्वास मत करना।" marSEIZINE 34
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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