SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । पुत्री मदालसा का पति कौन होगा ?" उस भविष्य-वक्ता ने अपने ज्ञानबल से विचारकर कहा - "राजेन्द्र ! आप की इस पुत्री को कोई मानव देहधारी क्षत्रिय राजकुमार ग्रहण करेगा । वह बड़ा पराक्रमी राजा होगा। उसके राज्य की सीमा दक्षिण लङ्का तक पहुँचेगी और वह इस संसार में महाराजाधिराज' कहलायगा। बल, वीर्य, विद्या और कलाओं के प्रभाव से उसकी सेवा के लिए विद्याधर भी तैयार रहेंगे।" ज्योतिषी की ऐसी बातें सुनकर लङ्कापति भ्रमरकेतु को बड़ा ही | दुःख हुआ । उसने सोचा कि- "क्या इस दिव्य कन्या को कोई स्थलचारी मानव प्राणी-ग्रहण करेगा ? क्या इस लोक में कोई खेचर रहा ही नहीं ? यह बात तो कभी भी नहीं होने देनी चाहिए।" यह सोचकर उस राक्षस राजा ने समुद्र के बीच में | इस पहाड़ पर यह महल बनवाया और इस महल के भीतर जाने का द्वार कुएँ में रखा है । उसने इसी महल में राजकुमारी मदालसा को रखी है । स्वयं लङ्कापति अपने पुरुषार्थ से उसकी रक्षा करता है और मुझे भी रक्षा तथा सेवा के लिए यहाँ नियुक्त की है । राक्षस कुमारी मदालसा को उसने पाँच रत्न दिये हैं और उसके निर्वाह के लिए अन्य आवश्यक वस्तुएँ भी उसी कूप द्वार से भेजी जाती हैं । कुएँ के नीचे कनक की एक जाली लगाई गई है ताकि उसमें से कोई भूचर प्राणी अन्दर न जा सके। राक्षसराज ने पुनः एक बार अन्य ज्योतिषी से यह प्रश्न किया कि - "मेरी पुत्री मदालसा का विवाह किसके साथ होगा ?" ज्योतिषी ने कहा - "आपकी पुत्री का पति कोई मनुष्य राजपुत्र होगा । जहाजों में बैठे हुए मनुष्यों में से निकलकर जिस राजकुमार ने आपको हराया था, वही आपका दामाद-जवाई बनेगा ।" भविष्यवेत्ता के मुख से यह बात सुनते ही भ्रमरकेतु को अत्यन्त क्रोध आया और वह उस मानव राजकुमार को मारने के लिए गया हुआ है। आगे क्या हुआ यह मुझे |मालूम नहीं !!" ___ इस वृद्धा दासी के मुँह से यह सुनते ही राजकुमार ने अपने चित्त में विचार |किया कि - "जिस राक्षस को मैंने कुबेरदत्त की रक्षा के लिए, लड़कर हराया था, वही राक्षस भ्रमर केतु था, और उसी की पुत्री यह मदालसा है। यह बात अभी प्रकट 25
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy