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________________ तो फिर मेरे भयङ्कर खड्ग से तेरा सिर उतार लूँगी।" इतना कहकर उस दिव्य देवी ने अपना भयङ्कर रूप प्रकट किया । तीक्ष्ण खड्ग हाथ में लिये, महामाया भय प्रदर्शित करते हुए कहने लगी --- "रे मानव ! बोल, अब क्या कहता है ? यदि तूं मेरी बात नहीं मानेगा तो मैं इसी तलवार से तेरा मस्तक धड़ से अलग कर दूँगी । देवी के ऐसे भयानक शब्द कहने पर भी वीर उत्तमकुमार अपनी दृढ़ता से जरा भी विचलित नहीं हुआ। उसने निर्भय होकर कहा - "सुधा पान से जाय मरि, चन्द्र बने अंगार । किन्तू मैं परनारि को, करूँ न अङ्गीकार ॥ जो इच्छा हो कर वही, मार भले हो तार । आगे पीछे एक दिन, मरना है इकवार ॥" राजकुमार के ऐसे विरोचित वचन सुनकर वह देवी प्रसन्न हो कहने लगी - “नरोत्तम ! धैर्य सिन्धु । परनारी-सहोदर । तुझे कोटि-कोटि धन्यवाद है। | तेरी दृढ़ता देखकर मेरे हृदय में आनन्द-सागर हिलोरें मार रहा है । तुझ जैसे वीर पुरुषों से ही आज भरतक्षेत्र की भूमि अपना सिर गौरव से ऊँचा कर सकती है। तुझ जैसे जितेन्द्रिय पुत्र को जन्म देनेवाली माता धन्यवाद के योग्य है। पुरुष पुङ्गव ! इस संसार में तूं सच्चा परनारी सहोदर है। पुत्र ! जा, तूं सुखी रहेगा और अपने जीवन में अत्यन्त उन्नति करेगा।" इतना कहकर उस देवी ने राजकुमार को बारह करोड़ | रत्न राशि अर्पण की और स्वयम् अदृश्य हो गयी। प्रिय पाठक ! इस घटना की नीति को आप अपने मनोमंदिर में अवश्य | स्थापित करना और परनारी सहोदर बनने की पवित्र भावना हृदय में धारण करना । परस्त्री के लिए अपने चित्त में मातृभावना और भगिनी भावना रखना | सबसे पवित्र कार्य है। इस प्रकार के संयम गुणों से भरतक्षेत्र में अनेक चमत्कार हो चुके हैं । अग्नि को शीतल करने वाला, शीतल को गर्म करनेवाला, सिंह को बकरी बनाने वाला और बकरी को सिंह बनानेवाला, विष को अमृत बनानेवाला और अमृत को विष बनानेवाला, समृद्र में स्थल उत्पन्न करनेवाला और स्थल पर 22
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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