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________________ यह जहाजों का बेड़ा समुद्र के वक्षस्थल पर निर्भय घूमता फिरता चला जा रहा था कि - मल्लहों ने जोर से पुकारकर कहा :- “शून्य द्वीप आ गया है । यहाँ पर मीठा पानी मिल सकेगा।" यह सुनते ही यात्री लोग द्वीप का मार्ग देखने लगे। मल्लाहों ने लंगर डाला।इस शून्य द्वीप में मीठा पानी मिलता था। इसलिए लोग अपने जहाजों को ठहरा कर यहाँ से पीने योग्य मीठा पानी भर लिया करते थे।अतः इन लोगों ने भी मीठा पानी अपने-अपने जहाज में भर लिया । जहाज चलने ही को थे कि इसी बीच भयङ्कर गर्जना हुई । गर्जना को सुनते ही लोग काँप उठे । मल्लाह लोग भी किंकर्तव्य विमूढ़, बनकर, भयभीत हुए । इस तरह सबको व्याकुल और भयभीत देखकर राजपुत्र उत्तम ने कुबेरदत्त से पूछा - "महाशय ! इस शून्य द्वीप में ऐसी गर्जना करने वाला यह कौन है ? यह गर्जना कहाँ से हुई ?" कुबेरदत्त ने डरते हुए कहा - "राजकुमार! इस शून्य द्वीप में भ्रमरकेतु नामक एक राक्षस रहता है। यह अत्यन्त निर्दय और क्रुर स्वभाववाला है। जब वह क्रुद्ध होकर आता है, तब लोगों को बहुत त्रास देता है और मार कर खा भी जाता है। भाई ! अब आज हमारे जीवन का अंत समझना चाहिए। उसके इस भयानक गजन को सुनते ही अनुमान होता है कि वह बहुत गुस्से में है।वह निर्दयी अवश्यमेव हमारी हानि करेगा।राजपुत्र ! आप क्षत्रिय हैं, अत एव हमारी रक्षा करो।जो प्राणनाश के समय रक्षा करता है, वही सच्चा क्षत्रिय है।आपके होते हुए हमलोग बे मौत मारे जावें, वह अनुचित है। भरतक्षेत्र के अनेक क्षत्रिय वीरों ने अपने प्राणों की आहुतियाँ दे देकर लोगों की रक्षा की हैं। चारों वर्गों में यदि कोई प्राण देकर दूसरे की रक्षा करने वाला है तो वह क्षत्रिय बालक है। आप हमें इस संकट से बचाइए हम आपकी शरण में हैं।" इस प्रकार कुबेरदत्त ने अत्यन्त नम्रता पूर्ण उत्तमकुमार से प्रार्थना की । इतने ही में वह भयङ्कर क्रूर कर्मा राक्षस भी पास आ पहुँचा, और लोगों को कष्ट देने | लगा । किसी का हाथ, किसी का पैर और किसी के बाल पकड़-पकड़ कर घसीटने लगा । उसके ऐसे नीच कृत्यों को देखकर रणवीर उत्तमकुमार ने म्यान | से तलवार निकाल ली और सिंह के बच्चे की तरह उसके आगे कूद पड़ा और
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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