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________________ किये है। वे गुण पता या गुरु द्वारा प्राप्त होना कठिन ही नहीं अपितु असम्भव है । तुमने अपने स्तनपान के साथ साथ उसे गुण - पान भी करवाया है। जिसके कारण राजकुमार विद्वान तथा गुणी बन सका है । जो माता अपने बालक की शिक्षा पर ध्यान नहीं देती वह माता नहीं बल्कि उसकी वैरिणी है ।” इस प्रकार वे दोनों राजकुमार के ज्ञान और कला की बहुत देर तक प्रशंसा करते रहे । इतने ही में समय सूचक सेवक ने आकर निवेदन किया :- “सरकार ! जिन पूजा का समय हो गया है ।" इतना कहकर सेवक प्रणाम करके लौट गया । महाराजा अपनी रानी सहित वहाँ से उठकर गृह - चैत्य में जिनेन्द्र भगवान की पूजा करने के लिए चल दिये । — पाठक ! आपको इस कथा के आरम्भ में कुछ जिज्ञासा हुई होगी, अतएव उसे यहाँ स्पष्ट करने की जरूरत है । गंगा किनारे के उस महल में जो सुन्दरी बैठी थी वह वाराणसी नगरी की महाराणी लक्ष्मीवती थी। पीछे से आने वाले वाराणसी नरेश महाराजा मकरध्वज थे । इन राज दम्पत्ति से उत्पन्न एक " उत्तम" नामक पुत्र था । उत्तमकुमार की शिक्षा-दीक्षा का महाराजा मकरध्वज ने यथेष्ट प्रबन्ध किया था । शिक्षण के लिए, सदाचारी और विद्वान् अध्यापक नियुक्त किये थे । फल स्वरूप राजकुमार परीक्षा में सर्वप्रथम उत्तीर्ण हुए । बस, इसी आनन्द में निमग्न महाराणी लक्ष्मीवती अपने महल में बैठी हुई थी और वहीं महाराजा मकरध्वज भी आ पहुँचे थे । दोनों ने उत्तमकुमार के परीक्षा में प्रथम उत्तीर्ण होने का आनन्द प्रदर्शित करते हुए कुछ समय तक बातचीत की। पश्चात् समय सूचक द्वारा, पूजा काल की सूचना पाकर दोनों गृहचैत्य में आये । प्राचीन काल में राजा लोग प्रत्येक कार्य के समय की सूचना देने के लिए वैसे ही मनुष्य रखते थे । राजकाज में लगे हुए राजाओं को ये सेवक गण समय और कार्य की सूचना देते; जिससे वे उस कार्य में बिना किसी विलम्ब के लग जाते थे । प्रतिक्रमण, स्नान, पूजन, सामायिक, भोजन, प्रजाकार्य और शयन वगैरह, | सभी आवश्यकीय कार्यों की सूचना उन्हें सेवकों द्वारा मिलती थी । वाराणसी 4
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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